हड्डियां मजबूत बनाने के साथ दिल को हेल्दी रखता है सरसों साग
सर्दी के परवान चढ़ते ही खाने-पीने में पौ-बारह हो जाते हैं. जो भी खाओ-पिओ, सब हजम. सर्दी के मौसम में दोपहर के वक्त अगर मक्के की रोटी-सरसों का साग और ऊपर से मक्खन का टुकड़ा मिला भोजन मिल जाए, तो वह स्वर्ग का आनंद देता है. वैसे तो सरसों के साग को किसी भी अन्न की रोटी के साथ खाओ, उसका स्वाद और गुण में कोई बदलाव नहीं होगा. यह साग हड्डियों को मजबूत करता है और दिल को भी स्वस्थ बनाए रखता है. भारत में हजारों वर्षों से एक विशेष पहचान बना चुका है सरसों का साग.
‘मक्के दी रोटी ते सरसों का साग’ करता है आकर्षित
‘मक्के दी रोटी ते सरसों का साग’ नामक यह वाक्य भोजन प्रेमी को तो आकर्षित करता ही है, आम-जन भी इसे खाने को लालायित रहते हैं. कभी पंजाब में मशहूर रहा यह भोजन आजकल पूरे भारत में अपनी शान बिखेर रहा है. यह आहार स्वादिष्ट तो होता ही है, साथ ही दिल-दिमाग को भी बेहतरीन सुकून पहुंचाता है. जब सर्दी का मौसम शुरू होता है और बाजारों में सरसों का साग बिकने को आ जाता है तो लोग इसे खरीदने का आतुर हो जाते हैं, क्योंकि वे जानते हैं कि सर्दी में यह साग उन्हें पूरा आनंद देगा. विशेष बात यह है कि जब खेत में सरसों पैदा होती है तो इसका साग भोजन का रूप ले लेता है और जब सरसों पककर पीली हो जाती है और उसमें बीज पैदा हो जाते हैं तो उसमें भी अद्भुत गुण पैदा हो जाते हैं. इन्हीं बीजों से निकला तेल पूरी दुनिया में खाया जा रहा है. भारत सहित कई देशों के इस तेल को ऑलिव ऑयल से भी ज्यादा गुणकारी माना जाता है.
यह तथ्य स्पष्ट है कि सरसों हजारों वर्ष पूर्व भारत और आसपास के क्षेत्रों में पैदा हुई. विशेष बात यह है कि प्राचीन काल से ही सरसों के साग को भोजन के रूप में और सरसों के तेल का प्रयोग किया जा रहा है. भारतीय अमेरिकी वनस्पति विज्ञानी प्रोफेसर सुषमा नैथानी ने के अनुसार सरसों का मूल केंद्र सेंट्रल एशियाटिक सेंटर है, जिसमें उत्तर पश्चिमी भारत, अफगानिस्तान, तजाकिस्तान और उजबेकिस्तान हैं. वैसे खाद्य इतिहासकार भी मानते हैं कि 3000 ईसा पूर्व सिंधु घाटी सभ्यता में सरसों के तेल का उपयोग किया जा रहा था.
सोवियत संघ के वनस्पति विज्ञानी निकोलाई इवानोविच वाविलोव (वर्ष 1887-1943), जिन्होंने दुनियाभर के खेती वाले पौधों के उत्पत्ति केंद्र पहचान की, उनका कहना है कि सरसों की उत्पत्ति भारत, चीन और यूरोप के किसी स्थान पर हुई थी. विश्वकोश ब्रिटानिका ने भी सरसों को सिंधु घाटी की सभ्यता के साथ जोड़ा है.
विटामिन्स व मिनरल्स से भरपूर है सरसों साग
विशेष बात यह है कि आज से लगभग 2700 वर्ष पूर्व लिखे गए भारत के प्राचीन आयुर्वेदिक ग्रंथ ‘चरकसंहिता’ में सरसों के साग और उसके तेल का वर्णन किया गया है और इन्हें शरीर के लिए गुणकारी बताया गया है. दूसरी ओर अमेरिकी कृषि विभाग (USDA) ने सरसों के साग के पोषण तत्वों की जानकारी दी है. विभाग के अनुसार एक कप (करीब 56 ग्राम) कटे हुए सरसों के साग में कैलोरी 15.1, प्रोटीन 1.6 ग्राम, वसा 0.235 ग्राम, कार्बोहाइड्रेट 2.62 ग्राम, फाइबर 1.79 ग्राम, कैल्शियम 64.4 मिलीग्राम, लोहा 0.918 मिलीग्राम, पोटेशियम 215 मिलीग्राम, सोडियम 11.2 मिलीग्राम, विटामिन सी 39.2 मिलीग्राम, विटामिन ए 84.6 माइक्रोग्राम, विटामिन के 144 माइक्रोग्राम के अलावा विटामिन ई, फोलेट (क्षतिग्रस्त कोशिकाओं को दुरुस्त करने वाला अम्ल), कॉपर, जिंक और सेलेनियम (एंटीऑक्सीडेंट गुण) भी थोड़ी-बहुत मात्रा में पाए जाते हैं.
फूड एक्सपर्ट व होमशेफ सिम्मी बब्बर के अनुसार किसी भी प्रकार का साग पाचन सिस्टम को दुरुस्त रखने मे कारगर होता है, चूंकि सरसों के साग में तो विटामिन्स व मिनरल्स भी खूब हैं, इसलिए इसे शरीर के लिए बेहद गुणकारी माना जाता है. इसका सेवन हड्डियों को मजबूत करता है साथ ही यह दिल के फंक्शन को भी नॉर्मल बनाए रखता है. हड्डी में फ्रैक्चर होने पर सरसों का साग खाने की सलाह दी जाती है.