बुलडोजर एक्शन पर सुप्रीम कोर्ट की रोक, केंद्र का एतराज
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को 1 अक्टूबर तक बुलडोजर एक्शन पर रोक लगा दी। कोर्ट ने कहा- अगली सुनवाई तक देश में एक भी बुलडोजर कार्रवाई नहीं की जानी चाहिए। हम स्पष्ट कर दें कि इस ऑर्डर में सड़क, रेलवे लाइन जैसी सार्वजनिक जगहों के अवैध अतिक्रमण शामिल नहीं हैं। अगली सुनवाई 1 अक्टूबर को है।
केंद्र सरकार ने कोर्ट के इस ऑर्डर पर सवाल उठाए। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा- संवैधानिक संस्थाओं के हाथ इस तरह नहीं बांधे जा सकते। इस पर जस्टिस बीआर गवई और केवी विश्वनाथन की बेंच ने कहा- अगर कार्रवाई दो हफ्ते रोक दी, तो आसमान नहीं फट पड़ेगा। आप इसे रोक दीजिए, 15 दिन में क्या होगा?
दरअसल, बुलडोजर एक्शन के खिलाफ जमीयत-उलेमा-ए-हिंद ने 22 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की थी। इसमें यूपी के मुरादाबाद, बरेली और प्रयागराज में हुए बुलडोजर एक्शन का भी जिक्र किया गया था।
कोर्ट रूम लाइव…
जमीयत-ए-उलेमा-ए-हिंद: हर दिन तोड़फोड़ हो रही है।
केंद्र सरकार: 2022 में नोटिस दिए गए और उसके बाद कार्रवाई की गई। इस बीच अपराध हुए।
सुप्रीम कोर्ट: 2024 में कार्रवाई में इतनी जल्दबाजी क्यों हो रही है, नोटिस तो 2022 में जारी किए गए थे।
सुप्रीम कोर्ट: मैं साफ कर दूं कि अगली तारीख तक हमारी इजाजत के बिना कोई भी तोड़-फोड़ नहीं होनी चाहिए। इस आदेश में सड़कें, रेलवे लाइंस, सरकारी फुटपाथ के अवैध अतिक्रमण शामिल नहीं है।
केंद्र सरकार: एक धारणा बनाई जा रही है।
सुप्रीम कोर्ट: बाहरी शोर से हम प्रभावित नहीं होते हैं। अभी हम इस पॉइंट पर नहीं जा रहे हैं कि किस समुदाय पर एक्शन लिया जा रहा है। अगर एक भी अवैध बुलडोजर एक्शन है तो यह संविधान के खिलाफ है।
सुप्रीम कोर्ट: धारणाओं से हम प्रभावित नहीं होते हैं। हम साफ कर दे रहे हैं कि हम किसी भी अवैध अतिक्रमण के बीच नहीं आएंगे, लेकिन अधिकारी जज नहीं बन सकते हैं।
केंद्र सरकार: याचिकाकर्ता कह रहे हैं कि धर्म विशेष के लिए तोड़फोड़ की कार्रवाई हो रही है।
सुप्रीम कोर्ट: अभी हमारा मकसद डिमोलेशन की कार्रवाई को व्यवस्थित करना है।
केंद्र सरकार: जिन पर कार्रवाई की गई है, वो कोर्ट आए ही नहीं। उन्हें पता है कि निर्माण अवैध है।
जमीयत-ए-उलेमा-ए-हिंद: इस अदालत ने आदेश दिया था, इसके बावजूद कुछ पत्थरबाजी की घटनाएं हुईं और उसी रात घर गिरा दिए गए। यह रोज हो रहा है।
केंद्र सरकार: MP का एक मामला है। जहां 70 दुकानों को गिरा दिया गया, इनमें से 50 दुकानें हिंदुओं की थीं।
सुप्रीम कोर्ट: इस मामले की सुनवाई 1 अक्टूबर को करेंगे, तब तक देश में एक भी तोड़-फोड़ नहीं होनी चाहिए।
केंद्र सरकार: इस तरह संवैधानिक संस्थाओं के हाथ नहीं बांधे जाने चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट: 2 हफ्ते कार्रवाई नहीं होगी तो कोई आसमान नहीं फट पड़ेगा। आप अपने हाथ रोक दीजिए। 15 दिन में क्या हो जाएगा।
जमीयत ने कहा था- मुसलमानों को निशाना बनाया जा रहा जमीयत का आरोप था कि BJP शासित राज्यों में मुसलमानों को निशाना बनाकर बुलडोजर एक्शन लिया जा रहा है। याचिका में एमनेस्टी इंटरनेशनल की एक रिपोर्ट का भी हवाला दिया गया। इनमें पांचों राज्यों में बुलडोजर एक्शन की 128 घटनाओं की फैक्ट फाइंडिंग है।
इस मामले में 2 सितंबर को पहली बार सुनवाई हुई। तब कोर्ट ने पूछा था कि सिर्फ आरोपी होने पर किसी का घर कैसे गिराया जा सकता है? कोर्ट ने कहा था कि गाइडलाइन बनाई जाए, जो पूरे देश में लागू हो। इसके लिए कोर्ट ने सभी पक्षों से सुझाव भी मांगे थे।
कोर्ट ने कहा था- अतिक्रमण को संरक्षण नहीं सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा था कि भले ही कोई दोषी क्यों न हो, फिर भी कानूनी प्रक्रिया का पालन किए बिना ऐसा नहीं किया जा सकता। हालांकि बेंच ने यह भी स्पष्ट किया था कि वह सार्वजनिक सड़कों पर किसी भी तरह अतिक्रमण को संरक्षण नहीं देगा। लेकिन, इस मामले से जुड़ी पार्टियां सुझाव दें। हम पूरे देश के लिए गाइडलाइन जारी कर सकते हैं।
कोर्ट ने टिप्पणी की थी- किसी का बेटा आरोपी हो सकता है, लेकिन इस आधार पर पिता का घर गिरा देना। यह कार्रवाई का सही तरीका नहीं है।
एक और सुनवाई में कहा- बुलडोजर एक्शन कानूनों पर बुलडोजर चलाने जैसा सुप्रीम कोर्ट ने 12 सितंबर को भी कहा था कि बुलडोजर एक्शन देश के कानूनों पर बुलडोजर चलाने जैसा है।मामला जस्टिस ऋषिकेश रॉय, जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस एसवीएन भट्टी की बेंच में था। सितंबर में यह दूसरा मौका है, जब SC ने बुलडोजर एक्शन पर नाराजगी जाहिर की है।
दरअसल, गुजरात में नगरपालिका की तरफ से एक परिवार को बुलडोजर एक्शन की धमकी दी गई थी। याचिका लगाने वाला खेड़ा जिले के कठलाल में एक जमीन का सह-मालिक है। उनके खिलाफ 1 सितंबर 2024 को एक मामले में FIR दर्ज की गई थी।
सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा था- आरोपी के खिलाफ अपराध को कानूनी प्रक्रिया के जरिए कोर्ट में साबित किया जाना चाहिए। जिस देश में कानून सर्वोच्च है, वहां ऐसी धमकियों को कोर्ट नजरअंदाज नहीं कर सकता।
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने नगरपालिका अधिकारियों को नोटिस जारी किया है। साथ ही यथास्थिति बनाए रखने का निर्देश दिया। कोर्ट ने गुजरात सरकार और नगर निगम से चार सप्ताह के भीतर जवाब मांगा है।