वाराणसी में 128 साल के पद्मश्री शिवानंद बाबा का निधन
वाराणसी के 128 साल के योग गुरु स्वामी शिवानंद बाबा का 3 मई की देर रात निधन हो गया। वह पिछले तीन दिनों से BHU के जेट्रिक वार्ड में एडमिट थे। शनिवार रात 8.45 बजे अंतिम सांस ली। उन्हें सांस लेने में दिक्कत हो रही थी। वहीं शिवानंद बाबा के निधन पर PM मोदी और CM योगी ने दुख जताया।
पार्षद अक्षयवर सिंह ने बताया- बाबा शिवानंद के अनुयायी विदेश तक हैं। सभी को सूचना दे दी गई है। उनका पार्थिव शरीर अंतिम दर्शन के लिए दुर्गाकुंड स्थित उनके आश्रम में रखा गया है। सोमवार को मणिकर्णिका घाट पर राजकीय सम्मान से अंतिम संस्कार किया जाएगा।
वहीं CM योगी ने अपने X अकाउंट पर लिखा- योग के क्षेत्र में अप्रतिम योगदान देने वाले काशी के प्रख्यात योग गुरु ‘पद्म श्री’ स्वामी शिवानंद जी का निधन अत्यंत दुःखद है। उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि!
आपकी साधना एवं योगमय जीवन संपूर्ण समाज के लिए महान प्रेरणा है। आपने अपना पूरा जीवन योग के विस्तार में समर्पित कर दिया।बाबा विश्वनाथ से प्रार्थना है कि दिवंगत पुण्यात्मा को सद्गति एवं उनके शोकाकुल अनुयायियों को यह अथाह दुःख सहन करने की शक्ति प्रदान करें। ॐ शांति!
तीन साल पहले 21 मार्च 2022 को उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया था। प्रयागराज महाकुंभ में शिवानंद बाबा का कैंप लगा था। उन्होंने कुंभ में पहुंचकर स्नान भी किया था। शिवानंद बाबा के आधार कार्ड पर जन्मतिथि 8 अगस्त 1896 दर्ज है। उनका जन्म बंगाल के श्रीहट्टी जिले में हुआ था। भूख की वजह से उनके माता-पिता की मौत हो गई थी, जिसके बाद से बाबा आधा पेट भोजन ही करते थे। 8 अगस्त 1896. श्रीहट्ट जिले (अब बांग्लादेश में) के ग्राम हरिपुर में ब्राह्मण परिवार में एक लड़के का जन्म हुआ। नाम रखा शिवानंद। शिवानंद के परिवार में चार लोग थे। वो, उनके माता-पिता और एक बड़ी बहन। उनके माता-पिता भिक्षा मांगकर ही पूरे परिवार का गुजारा करते थे। कुछ वक्त तो जैसे-तैसे पूरे परिवार का गुजारा होता गया, लेकिन अब मुश्किलें बढ़ने लगीं थीं।
घर में खाने तक के पैसे नहीं थे इसलिए मां-बाप को शिवानंद की चिंता सताने लगी। जब वो 4 साल के हुए तो उन्हें बाबा श्री ओंकारनंद गोस्वामी को समर्पित कर दिया गया, ताकि वहां उनकी देखभाल हो सके। बचपन से ही शिवानंद ने गुरु के पास रहकर शिक्षा लेना शुरू कर दिया था।
करीब दो साल बीते… एक दिन शिवानंद के माता-पिता और बहन भिक्षा मांगने निकले। वो जगह-जगह भटके लेकिन खाने को कुछ नहीं मिला। थक हारकर वो घर वापस आए। कुछ दिन यही सिलसिला चलता रहा। वो भिक्षा मांगने जाते पर खाली हाथ वापस लौट आते। पूरे परिवार की तबीयत खराब रहने लगी। आखिरकार एक दिन भूख की वजह से शिवानंद के माता-पिता और बहन की मौत हो गई।
गुरुजी के पास थे तब पहली बार गरम चावल देखा शिवानंद के माता-पिता की मौत के बाद उनकी पूरी जिम्मेदारी बाबा श्री ओंकारनंद ने अपने ऊपर ले ली। अब शिवानंद का पूरा भरण पोषण गुरु के आश्रम में होता था। शिवानंद कभी स्कूल नहीं गए। गुरु के पास ही रहकर उन्होंने व्यावहारिक ज्ञान और शिक्षा ली।
बाबा का परिवार भिक्षा मांगकर ही गुजर-बसर करता था। भिक्षा में सिर्फ उबले चावल का मांड ही मिल पाता था इसलिए जन्म से लेकर गुरु के पास आने तक उन्होंने सिर्फ चावल का मांड ही पिया था। यहां आए तब उन्हें भोजन का महत्त्व समझ आया। यहीं पहली बार उन्हें पता चला कि गरम चावल किसे कहते हैं। उन्होंने माता-पिता की मौत के बाद आज तक भरपेट खाना नहीं खाया।
जब उनके माता-पिता का देहांत हो गया तब उन्होंने तय किया कि उन्हें पैसों के पीछे नहीं भागना है, बल्कि ज्ञान के साथ रहना है और लोगों की सेवा करनी है। बाबा बचपन में अक्सर कई दिन तक खाली पेट रहते थे क्योंकि कुछ खाने को नहीं होता था।
उन्होंने तय किया था कि वो आधा पेट ही भोजन करेंगे। 6 साल की उम्र से ही बाबा आधा पेट भोजन करते और बाकी आधा अन्न गरीबों को दे देते थे। उनका मानना था कि जैसे उनके घरवाले उन्हें छोड़कर चले गए वैसे किसी और की मौत भूख से नहीं होनी चाहिए। इसलिए उन्होंने अपना पूरा जीवन गरीबों की सेवा में लगा दिया था।