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काशी में मोरारी बापू के चरणों में बैठे बाबा रामदेव

बाबा रामदेव रविवार को काशी में चल रही मोरारी बापू की कथा में पहुंचे। योग गुरु ने बापू के चरणों में बैठकर आशीर्वाद लिया। बाबा रामदेव ने कहा- मैं आज किसी की आलोचना का उत्तर देने के लिए नहीं आया हूं। न मुझे इतनी फुर्सत है।

बापू राष्ट्र संस्कृति के धरोहर हैं, महापुरुष हैं। बापू की आलोचना कोई भी विधर्मी मुसलमान, ईसाई और कम्युनिस्ट करे तो लगता है कि यह तो विरोधी कर रहे होंगे, लेकिन जिन्हें हम सनातनी कहते हैं, वह लोग तनातनी क्यों करते हैं। यह सनातनी संस्कृति है, न कि तनातनी।

वहीं मोरारी बापू ने आज कथा के समापन पर एक बार फिर महापुरुषों से माफी मांगी। उन्होंने कहा- अगली बार हम काशी कबीर मानस कहने के लिए आएंगे। नौ दिन की कथा में हमको लगा कि हमने सब कुछ कह दिया, लेकिन आज जब मैं व्यास पीठ से जा रहा हूं तो मुझे लग रहा है, सब कुछ अधूरा है। शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने वीडियो बयान जारी कर मुरारी बापू का विरोध किया था। शंकराचार्य ने कहा था- यह रावण जैसी प्रवृत्ति है।

दरअसल, मोरारी बापू की पत्नी का 12 जून को निधन हो गया था। इसके बाद वो 14 जून को काशी आए। यहां उन्होंने बाबा विश्वनाथ के दर्शन किए। जलाभिषेक किया। इसके बाद उनका विरोध शुरू हो गया। वाराणसी में कथा के पहले दिन लोगों ने उनका पुतला फूंककर विरोध जताया था। रविवार को रुद्राक्ष कन्वेंशन सेंटर में व्यासपीठ से मोरारी बापू ने माफी मांगी। उन्होंने यह भी कहा था कि मेरे पास भी शास्त्र है, दिखा सकता हूं।

कथा के आखिरी दिन कथा वाचक मोरारी बापू ने कहा- योग जरूरी है, लेकिन परमात्मा के प्रति प्रेम और परस्पर प्रेम उससे भी अधिक जरूरी है। अगर प्रेम नहीं है तो योग-वियोग, ज्ञान-अज्ञान कुछ भी महत्वपूर्ण नहीं है। हिंदू सनातन धर्म सर्वश्रेष्ठ है, क्योंकि यह सबका सम्मान करता है। सबका स्वीकार करता है। यह आकाश के समान विशाल है। मोरारी बापू ने कहा- शिव-पार्वती के बीच किया गया सिंदूर दान आधि दैविक है। तीसरे प्रकार का सिंदूर है आध्यात्मिक। भगवान राम माता जानकी की मांग में सिंदूर दान करते हैं। वह पुरुष द्वारा प्रकृति को दिया गया आध्यात्मिक सिंदूर है। सिंदूर नारी का श्रृंगार है, लेकिन पुरुषों को भी इसे सीखना होगा।

अगर कोई बुद्ध पुरुष हमें अपनाता है, स्वीकार करता है, तो वह हमारा सिंदूर है। सिंदूर का ऐसा उपहार पाकर हम भी कबीरजी की तरह नित्य नूतनता का अनुभव कर सकते हैं। मोरारी बापू ने कहा कि मैं नित्य प्रसन्न हूं, क्योंकि मेरे बुद्ध पुरुष ने मेरी मांग भरी है।

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