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अफगान विदेश मंत्री के कार्यक्रम में महिला पत्रकारों पर बंदिश:देवबंद बोला- पर्दे में बैठें

अफगानिस्तान के विदेश मंत्री अमीर खान मुत्तकी शनिवार दोपहर यूपी के देवबंद पहुंचे। दिल्ली के बाद यहां भी महिला पत्रकारों की एंट्री को लेकर विवाद सामने आया। कार्यक्रम का कवरेज करने पहुंची महिला पत्रकारों पर बंदिश लागू कर दी गई। दारुल उलूम के मीडिया प्रभारी अशरफ उस्मानी ने उन्हें पर्दे के पीछे अलग बैठने के लिए कहा है।

देवबंद में मुत्तकी का फूल बरसाकर स्वागत किया गया। इसके बाद छात्र उनसे मिलने के लिए टूट पड़े। भीड़ इतनी अधिक थी कि सुरक्षा घेरा टूट गया। पुलिस ने छात्रों को धक्का देकर हटाया। इसके चलते अफगानी मंत्री को गार्ड ऑफ ऑनर भी नहीं दिया जा सका।

मुत्तकी ने कहा- मैं इस गर्मजोशी भरे स्वागत के लिए देवबंद के उलेमा और क्षेत्र के लोगों का शुक्रगुजार हूं। भारत-अफगानिस्तान संबंधों का भविष्य बहुत उज्ज्वल दिखाई देता है।

मुत्तकी की लाइब्रेरी में स्पीच थी, हालांकि स्पीच बाद में कैंसिल कर दी गई। मुत्तकी की स्पीच कैंसिल क्यों हुई? मदनी ने बताया- विदेश मंत्री की दारुल उलूम में आने वाले छात्रों से बातचीत हो चुकी है। लेकिन, उनके साथ आए मंत्रालय के अधिकारियों ने जल्दी लौटने की बात कही। हमने भी उनसे कह दिया, भाई अगर आप जल्दी जाना चाहते हैं तो जाइए।

मुत्तकी को दारुल उलूम में 5 घंटे रुकना था, शाम 5 बजे तक का कार्यक्रम था। हालांकि, वे तय समय से ढाई घंटे पहले दोपहर 2.30 बजे ही देवबंद से दिल्ली के लिए सड़क मार्ग से रवाना हो गए। अब कल यानी रविवार को वह आगरा जाएंगे। देवबंद में इस्लामी पढ़ाई कर रहे अफगानिस्तान के 20 छात्रों से उन्होंने बात की। देवबंद का दारुल उलूम 156 साल पुराना इस्लामिक शिक्षा का केंद्र है।

मुत्तकी ने शुक्रवार को अफगान एंबेंसी में प्रेस कॉन्फ्रेंस की थी। इसमें एक भी महिला पत्रकार नहीं थी। इस पर कांग्रेस सांसद प्रियंका गांधी वाड्रा ने PM मोदी से पूछा- भारत में हमारे ही देश की कुछ सबसे सक्षम महिलाओं का अपमान कैसे होने दिया गया। मुत्तकी 7 दिन के भारत दौरे पर 9 अक्टूबर को काबुल से दिल्ली पहुंचे थे।

अफगानी विदेश मंत्री अमीर खान मुत्तकी के दौरे के बाद जमीअत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने कहा- हमारे और अफगानिस्तान के रिश्ते इल्मी नहीं, बल्कि ऐतिहासिक हैं। मैंने उनसे कहा है कि हिंदुस्तान की आजादी की जंग में हमारे बुजुर्गों का बड़ा योगदान रहा है। उस वक्त अफगानिस्तान की सरजमीन को ही इस आंदोलन के लिए चुना गया था। अफगानिस्तान और हिंदुस्तान के रिश्तों में अब काफी सुधार होगा। हिंदुस्तान के मुसलमानों और दारुल उलूम का अफगानिस्तान से गहरा नाता रहा है, जिसे आगे भी कायम रखा जाएगा।

मीडिया के सवाल- क्या दोनों देशों के बीच मुसलमानों की स्थिति को लेकर कोई राजनीतिक बातचीत हुई है? मौलाना मदनी ने जवाब दिया- हमारी कोई सियासी बातचीत नहीं हुई। हमने केवल दीन और तालीम (धार्मिक शिक्षा) से जुड़ी बातें की हैं। पहले यह धारणा थी कि हिंदुस्तान में जो आतंकवादी घटनाएं होती हैं, उनमें अफगानिस्तान की सरजमीन का इस्तेमाल होता है। मगर, अब यह साफ हो गया है कि अफगानिस्तान से किसी भी देशद्रोही या दहशतगर्द को भारत में मदद नहीं मिलेगी। यह रिश्तों के एक नए दौर की शुरुआत है।

दारुल उलूम के छात्र अफगानी विदेश मंत्री से हाथ मिलाने और मिलने के लिए छात्र टूट पड़े। पुलिस वालों ने छात्रों को धक्का देकर वहां से हटाया। जब तक सामान्य हालात नहीं हुए, अफगानी विदेश मंत्री कार में ही बैठे रहे।

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