चुनाव से पहले पश्चिम बंगाल में ध्रुवीकरण का ‘कॉकटेल’, भगवा-ए-हिन्द की गूंज
पश्चिम बंगाल की राजनीति इस वक्त एक ऐसे दोराहे पर खड़ी है, जहां हवाओं में ‘सोनार बांग्ला’ के वादे कम और ‘धर्मयुद्ध’ का शोर ज्यादा सुनाई दे रहा है. कोलकाता के ऐतिहासिक ब्रिगेड परेड ग्राउंड से लेकर मुर्शिदाबाद की गलियों तक, सियासी बिसात पर मोहरे बिछ चुके हैं. एक तरफ 5 लाख कंठों से फूटता ‘गीता का पाठ’ है, तो दूसरी तरफ ‘एक लाख लोगों के कुरान पाठ’ का अल्टीमेटम. हिन्दू मुसलमान खूब हो रहा है. इस धार्मिक रस्साकशी के बीच अगर कोई सबसे ज्यादा फंसा हुआ नजर आ रहा है, तो वह हैं मुख्यमंत्री ममता बनर्जी.
रविवार को कोलकाता के ब्रिगेड परेड ग्राउंड में जो हुआ, वह सामान्य नहीं था. यह मैदान वामपंथियों और टीएमसी की विशाल रैलियों का गवाह रहा है, लेकिन इस बार यहां ‘सनातन संस्कृति संसद’ के बैनर तले लगभग लाखों लोगों ने एक साथ श्रीमद्भगवद्गीता का पाठ किया. दावा किया जा रहा कि इस भीड़ में 5 लाख हिन्दू थे. मंच पर संतों की मौजूदगी थी. महामंडलेश्वर स्वामी ज्ञानानंद जी महाराज, पद्मभूषण साध्वी ऋतंभरा और बागेश्वर धाम के धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री. लेकिन, इस धार्मिक आयोजन के सियासी मायने तब स्पष्ट हो गए जब वहां बंगाल भाजपा का पूरा शीर्ष नेतृत्व मौजूद दिखा. केंद्रीय मंत्री सुकांत मजूमदार, नेता प्रतिपक्ष शुभेंदु अधिकारी और यहां तक कि राज्यपाल सी.वी. आनंद बोस की उपस्थिति ने साफ कर दिया कि यह केवल आध्यात्मिक आयोजन नहीं, बल्कि 2024 और 2026 के चुनावों के लिए ‘हिन्दू वोट बैंक’ के एकीकरण का शंखनाद है.
हम गजवा-ए-हिन्द नहीं, भगवा-ए-हिन्द बनाएंगे
बागेश्वर बाबा और साध्वी ऋतंभरा के बयानों ने आग में घी का काम किया. उनका संदेश स्पष्ट था… हम गजवा-ए-हिंद नहीं, भगवा हिंद चाहते हैं. साध्वी ऋतंभरा ने कहा, ये राष्ट्र राम का है, राम का ही रहेगा और धीरेंद्र शास्त्री का यह कहना कि राम पर टिप्पणी करने वालों की ठठरी बांध दी जाएगी, भाजपा के उस कोर वोटर को साधने की कोशिश है जो ममता राज में खुद को उपेक्षित महसूस करता है.
भाजपा जहां एक तरफ हिन्दुत्व की पिच पर आक्रामक बैटिंग कर रही है, वहीं ममता बनर्जी के लिए सबसे बड़ी चिंता उनके अपने बनते जा रहे हैं. टीएमसी से निलंबित विधायक हुमायूं कबीर ने जो ऐलान किया है, उसने ममता के पारंपरिक ‘मुस्लिम वोट बैंक’ में सेंधमारी का खतरा पैदा कर दिया है.
एक लाख कुरान पाठ का ऐलान
हुमायूं कबीर का बयान- अगर हिन्दू गीता का पाठ कर रहे हैं, तो हम एक लाख मुसलमानों को लेकर कुरान का पाठ कराएंगे, सीधे तौर पर काउंटर पोलराइजेशन की कोशिश है. कबीर मुर्शिदाबाद में ‘बाबरी मस्जिद’ की तर्ज पर मस्जिद बनाने की नींव रख चुके हैं. उनका तर्क है कि अगर राम मंदिर बन सकता है, तो बाबरी की याद में मस्जिद क्यों नहीं?
ममता के लिए मुसीबत क्यों
- अगर ममता हुमायूं कबीर का विरोध करती हैं तो मुस्लिम समुदाय में संदेश जाएगा कि ‘दीदी’ अब सॉफ्ट हिन्दुत्व की राह पर हैं, जिससे उनका कोर वोट बैंक मुस्लिम ओवैसी की पार्टी AIMIM या आईएसएफ (ISF) या हुमायूं कबीर जैसे नेताओं की तरफ छिटक सकता है.
- अगर ममता चुप रहती हैं तो बीजेपी यह प्रचारित करेगी कि ममता तुष्टिकरण कर रही हैं और हिन्दुओं के खिलाफ हैं. इससे हिन्दू वोटों का ध्रुवीकरण भाजपा के पक्ष में और तेज होगा.
आखिर फायदा किसका?
हिन्दू कंसोलिडेशन: गीता पाठ, साध्वी ऋतंभरा के उग्र बयान और ‘जय श्री राम’ के नारे बंगाल के हिन्दू वोटर (विशेषकर दलित और ओबीसी, जो टीएमसी से नाराज हैं) को एकजुट कर रहे हैं. ब्रिगेड ग्राउंड की भीड़ इसका प्रमाण है.
वोटों का बंटवारा : हुमायूं कबीर और अन्य मुस्लिम नेताओं द्वारा अलग पार्टी या मोर्चा बनाने से टीएमसी का ‘एकाधिकार’ टूटेगा. मुर्शिदाबाद और मालदा जैसे गढ़ में अगर टीएमसी कमजोर होती है, तो उनकी सत्ता की कुर्सी डगमगा जाएगी.
ममता की मुश्किल: ममता बनर्जी इस समय इधर कुआं, उधर खाई की स्थिति में हैं. भाजपा उन्हें ‘एंटी-हिन्दू’ साबित करने पर तुली है, और हुमायूं कबीर जैसे नेता उन्हें ‘मुस्लिम विरोधी’ या ‘कमजोर रक्षक’ साबित करने में लगे हैं.

