श्रीजी मंदिर में लड्डू गोपाल लेकर पहुंच रहे भक्त
मथुरा के बरसाना में राधाष्टमी 31 अगस्त को मनाई जाएगी। इस उत्सव पर पूरा बरसाना ‘लाडलीजी’ के रंग में डूबा हुआ दिख रहा है। यहां की गलियों में राधे-राधे की गूंज है। भक्त सखी और श्रीकृष्ण के रूप में मंदिर पहुंचने लगे हैं। राधा रानी के जन्म के बाद दर्शन के लिए 2 दिन में 15 लाख भक्त बरसाना पहुंचेंगे।
महाराष्ट्र, दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, गुजरात, बिहार, झारखंड और यूपी से लोग राधा रानी के दर्शन के लिए पहुंच रहे हैं। ज्यादातर भक्तों के हाथों में उनके लड्डू गोपाल हैं, ताकि जन्म के बाद श्रीजी अपने ठाकुरजी को देख सके। वहीं, ठाकुरजी भी एक नजर श्रीजी को निहार लें।
भक्तों की दर्शन इच्छा पूरी करने के लिए श्रीजी मंदिर में राधा रानी 15 घंटे दर्शन देने वाली हैं। सामान्य दिनों में यह दर्शन 11 घंटे तक होते हैं। 31 अगस्त की सुबह 4 बजे से अभिषेक के दौरान भी श्रद्धालुओं को 1 घंटे तक राधा रानी के दर्शन होंगे। जन्म के बाद पहले श्रृंगार में राधाजी पीतांबर वस्त्र धारण करेंगी।
श्रीजी मंदिर में 31 अगस्त की सुबह कितने बजे से दर्शन शुरू होंगे? राधारानी की जन्म की कहानी क्या है?
सुदामा चौक से एंट्री, मंदिर का रूट वनवे वीक एंड होने की वजह से भक्त ज्यादा पहुंचेंगे, इसलिए मंदिर के रूट को वन-वे किया गया है। मंदिर तक पहुंचने के लिए सुदामा चौक से सीढ़ियों के जरिए भक्तों को भेजा जाएगा। दर्शन के बाद जयपुर मंदिर रूट से भक्तों को वापस भेजा जाएगा। मंदिर तक पहुंचने के लिए श्रद्धालुओं को 6 बैरियर क्रॉस करने होंगे। ये बैरियर हैं- पुराना अड्डा, सुदामा चौक, दादी बाबा मंदिर, मंदिर की सीढ़ियां, सिंह पौर और सफेद छतरी।
LIVE दर्शन के लिए लगेंगी LED स्क्रीन बरसाना के श्रीजी गेट, कटरा चौक, सुदामा चौक, सफेद छतरी के सामने, नया बस स्टैंड और मेरा बरसाना गेट पर LED स्क्रीन लगाए जा रहे हैं। ताकि, श्रद्धालु यहां खड़े होकर भी मंदिर के अंदर के दर्शन LIVE कर सकेंगे।
दरअसल, राधारानी बरसाना के जिस ब्रह्मांचल पर्वत पर अपने महल से दर्शन देती हैं, मान्यता है कि उनका जन्म यहां से 65Km दूर रावल गांव में हुआ था। 5252 साल पहले यमुना नदी में बहते हुए कमल के पुष्प पर राधाजी प्रकट हुई थी। रावल गांव मथुरा से 15 km दूर है, जबकि गोकुल से इसकी दूरी सिर्फ 3Km है। राधाजी का प्राकट्य 5252 वर्ष पहले माना जाता है।
राधारानी का प्राचीन मंदिर है। यहां हमारी मुलाकात पुजारी राहुल कल्ला से हुई। वह कहते हैं- यह राधा रानी की जन्मस्थली है। द्वापर युग में वृषभानु जी के कोई कन्या नहीं थी। वो यमुना स्नान करते और यमुना से कन्या प्राप्ति का आग्रह करते थे।
राहुल कल्ला बताते हैं- वृषभानु को एक दिन यमुना स्नान के दौरान कमल का फूल दिखाई दिया। उस फूल पर इतना तेज था कि वह भयभीत हो गए। धीरे-धीरे यमुना के बहाव में वह कमल पुष्प उनके नजदीक आ गया। उस पर सूर्य की किरणें पड़ रही थीं। धीरे-धीरे वह कमल का फूल खिलने लगा और उसमें एक कन्या दिखाई दी। उनके नेत्र बंद थे, होठों पर हल्की मुस्कान थी। वृषभानु उस कन्या को घर ले आए और अपनी पत्नी कीर्ति को दिया। उस कन्या का नाम रखा- राधा।
पुजारी राहुल कल्ला कहते हैं कि, श्रीकृष्ण के ब्रज से जाने के बाद ब्रज विलुप्त हो गया। बीच में उनके प्रपौत्र बज्रनाभ ने ब्रज में कुछ मंदिर बनवाए। करीब 500 साल बाद यहां संतों का आगमन हुआ, जिन्होंने ब्रज को फिर से स्थापित करने में भूमिका निभाई। बरसाना में श्रीजी के मंदिर में हमारी मुलाकात मंदिर के सेवायत और रिसीवर यज्ञ पुरुष गोस्वामी से हुई। यज्ञ पुरुष ने बताया- हमारी लाडलीजी का विग्रह दक्षिण भारत के मदुरई से आए संत नारायण भट्ट गोस्वामी को इसी ब्रह्मांचल पर्वत पर मिला। तभी से वह विग्रह मंदिर में विराजमान है।
नारायण भट्ट महाराज का परिवार राधारानी मंदिर के पुजारियों की गुरु परंपरा से हैं। बरसाना में श्रीजी मंदिर से निकलकर हम करीब 4Km दूर स्थित ऊंचगांव पहुंचे। यहां नारायण भट्ट महाराज का वह घर मिला, जहां वह ब्रज में 9 साल की अवस्था में आने के बाद रहे। 125 वर्ष की उम्र में उन्होंने देह त्यागी थी। यहां हमारी मुलाकात नारायण भट्ट महाराज की 17 वीं पीढ़ी के सदस्य घनश्याम भट्ट से हुईं। यह परिवार आज भी बरसाना राधारानी मंदिर में सेवा करने वाले सेवायतों की गुरु परंपरा से जुड़ा है।