उत्तराखंड के जंगलों में 4 दिन से आग लगी, सेना के हेलिकॉप्टर लगाए गए
देहरादून, उत्तराखंड के भीमताल से सटे जंगलों में 4 दिन से लगी आग बेकाबू हो चुकी है। सबसे ज्यादा असर गढ़वाल और कुमाऊ मंडल के 11 जिलों में है। नैनीताल से लेकर भीमताल, रानीखेत, अल्मोड़ा सहित पूरे कुमाऊं में जंगल धधक रहे हैं।
गढ़वाल मंडल में पौड़ी, रुद्रप्रयाग, चमोली, उत्तरकाशी, टिहरी, देहरादून और कुमाऊ मंडल में नैनीताल, बागेश्वर, अल्मोड़ा, पिथौरागढ़ और चंपावत जिले सबसे ज्यादा प्रभावित हैं।
वन विभाग, फायर ब्रिगेड, पुलिस के साथ-साथ सेना के जवान रेस्क्यू ऑपरेशन में लगे हुए हैं। आर्मी एरिया में आग पहुंचती देख एयरफोर्स के MI-17 हेलिकॉप्टर की मदद ली गई। अब तक 720 हेक्टेयर (1780 एकड़) जंगल को नुकसान पहुंचा है। यह आंकड़ा और बढ़ेगा।
रुद्रप्रयाग में 3 लोगों को जंगल में आग लगाने के आरोप में गिरफ्तार किया गया। उधर, लपटें नैनीताल हाईकोर्ट कॉलोनी और आर्मी एरिया से कुछ दूर तक पहुंच गईं। अभी इलाका खाली नहीं कराया गया है। लोगों को अलर्ट किया गया है।
मुख्यमंत्री मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी शनिवार शाम को वन प्रशिक्षण अकादमी हल्द्वानी में आग को रोकने के प्रयासों और नुकसान की समीक्षा की। साथ ही अफसरों को सतर्क रहने के निर्देश दिए और वन विभाग के कर्मचारियों के अवकाश पर रोक लगा दी।
- एक्सपर्ट्स के मुताबिक उत्तराखंड में 15 फरवरी से 15 जून यानी 4 महीने फायर सीजन होता है। मतलब फरवरी के मध्य से जंगलों में आग लगने की घटनाएं शुरू हो जाती हैं, जो अप्रैल में तेजी से बढ़ती हैं। बारिश शुरू होते ही ये 15 जून तक धीरे-धीरे खत्म हो जाती हैं।
- कुछ स्थानों पर आग लगने का कारण सर्दियों के मौसम में कम बारिश और बर्फबारी होना है। जंगलों में पर्याप्त नमी नहीं होने से गर्मियों में आग लगने की घटनाएं बढ़ जाती हैं। कम नमी की वजह से पेरूल के पत्तों में ज्यादा आग लगती है। पहाड़ों से पत्थर गिरने की वजह से भी आग की घटनाएं बढ़ती हैं।
- कुछ जगहों पर इंसान द्वारा भी आगजनी की घटनाएं होती हैं। जंगलों में हरी घास उगाने के लिए स्थानीय लोग भी आग की घटनाओं को अंजाम देते हैं। इन पर वन विभाग नजर रखता है। अभी तक आग लगाने के मामलों में कुल 19 मुकदमे दर्ज किए गए हैं, जिसमें से 3 मुकदमे नामजद हैं और 16 मुकदमों में जांच चल रही है।