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हिजबुल मुजाहिदीन का आतंकी 31 साल बाद बरी, कोर्ट ने कहा- दस्तावेज सबूतों से नहीं ठहरा सकते दोषी

सहारनपुर के देवबंद कस्बे में वर्ष 1993 में हुए आतंकी बम धमाके के मुख्य आरोपी नजीर अहमद वानी को कोर्ट ने सबूतों के अभाव में बरी कर दिया। एसीजेएम परविंदर सिंह की कोर्ट ने 31 साल पुराने इस मामले में सुनवाई के बाद नजीर को बरी कर दिया। विस्फोट में दो पुलिसकर्मियों समेत कुल छह लोग घायल हुए थे। ATS की टीम कश्मीर से 2024 को दोबारा अरेस्ट करके लाई थी। कोर्ट ने आदेश में कहा-केवल दस्तावेजी साक्ष्यों के आधार पर आरोपी को दोषी को नहीं ठहराया जा सकता।

1993 में हुआ था धमाका, घायल हुए थे कई लोग 1992 में बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद 1993 में देवबंद के स्टेट हाईवे पर स्थित यूनियन तिराहे पर हुआ था। उस समय वहां ड्यूटी पर तैनात यूपी पुलिस के कांस्टेबल कन्हैया लाल और कांस्टेबल अर्जुमन अली घायल हो गए थे।

इसके अलावा स्थानीय निवासी प्रकाश, सुखबीर और मोहल्ला रेती चौक निवासी एक अन्य व्यक्ति भी गंभीर रूप से घायल हो गया था। पुलिस ने कश्मीर के बडगाम जिला निवासी नजीर अहमद वानी उर्फ मुस्तफा को आरोपी बताते हुए मुकदमा दर्ज कर अरेस्ट कर जेल भेज दिया था।

पुलिस ने बताया था हिजबुल मुजाहिदीन का सदस्य देवबंद पुलिस ने इस धमाके को आतंकी हमला मानते हुए वर्ष 1994 में जम्मू-कश्मीर के बड़गाम जिले निवासी नजीर अहमद वानी को आतंकी संगठन हिजबुल मुजाहिदीन का सक्रिय सदस्य बताते हुए अरेस्ट किया था। गिरफ्तारी के कुछ समय बाद ही उसे जमानत मिल गई थी, जिसके बाद वह फरार हो गया और अपना नाम-पता बदलकर कश्मीर के अलग-अलग स्थानों पर रहने लगा।

गैर जमानती वारंट के बाद दोबारा गिरफ्तारी 2024 में जब नजीर लगातार कोर्ट में पेश नहीं हुआ तो कोर्ट ने उसके खिलाफ गैर जमानती वारंट जारी किए। इसके बाद एटीएस और पुलिस की संयुक्त टीम ने अक्टूबर-नवंबर 2024 में उसे जम्मू-कश्मीर से दोबारा गिरफ्तार कर लिया। उस समय उस पर 25 हजार रुपए का इनाम भी घोषित था। जनवरी 2025 में उसे फिर से जमानत मिल गई, लेकिन मुकदमे की कार्यवाही जारी रही।

चुनाव लड़ा, लेकिन मुकदमे का नहीं किया जिक्र 51 वर्षीय नजीर अहमद वानी ने वर्ष 2024 में जम्मू-कश्मीर की बड़गाम विधानसभा सीट से तत्कालीन मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला के खिलाफ चुनाव भी लड़ा था, जिसमें उसे हार का सामना करना पड़ा। दिलचस्प बात यह रही कि अपने चुनावी शपथ पत्र में नजीर ने खुद को व्यापारी बताया और देवबंद विस्फोट मामले में चल रहे मुकदमे का कोई जिक्र नहीं किया।

31 साल बाद बरी, ये बने दोषमुक्त के आधार करीब तीन दशक बाद कोर्ट ने इस चर्चित मामले में फैसला सुनाते हुए नजीर अहमद वानी को सबूतों के अभाव में दोषमुक्त कर दिया। अभियोजन पक्ष ठोस साक्ष्य प्रस्तुत करने में असफल रहा, जिसके चलते अदालत ने आरोपी को क्लीन चिट दे दी।

कोर्ट ने आदेशों में कहा-केवल दस्तावेजी साक्ष्य के आधार पर अभियुक्त पर दोष सिद्ध नहीं किया जा सकता। जब तक दस्तावेजी साक्ष्य के समर्थन में कोई मौखिक या प्रत्यक्षदर्शी साक्ष्य प्रस्तुत न किए जाए। अभियोजन पक्ष ने अभियुक्त पर आरोप आरोप को साबित करने में विफल रहा और कोई साक्ष्य प्रस्तुत नहीं कर सका। घटना संदिग्ध प्रतीत होती है। संदेह का लाभ अभियुक्त को प्राप्त होगा, जो दोषमुक्त किए जाने योग्य है।

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