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कृषि- किसान

आलू की पत्तियों पर काले धब्बे दिखें तो समझ जाएं खतरा!

How to take care of potato crop in winter: सर्दी का मौसम शुरू होते ही तापमान तेजी से गिरने लगता है. इस दौरान रात और सुबह के समय खेतों में भारी मात्रा में ओस गिरती है. यही ओस आलू की फसल के लिए सबसे बड़ा खतरा बन जाती है. जब खेतों में जरूरत से ज्यादा नमी बनी रहती है, तो आलू की फसल पर फफूंद जल्दी पनपने लगती है. इसी कारण झुलसा रोग का खतरा कई गुना बढ़ जाता है. अगर किसान समय रहते इस बीमारी पर ध्यान नहीं देते हैं, तो पूरी फसल खराब होने की आशंका बनी रहती है.

ओस और नमी से क्यों फैलता है झुलसा रोग?
सर्दियों में लगातार ओस पड़ने से खेतों की मिट्टी और फसल की पत्तियां लंबे समय तक गीली रहती हैं. यह स्थिति फफूंद के लिए सबसे अनुकूल मानी जाती है. फफूंद के बढ़ते ही झूलसा रोग तेजी से फैलने लगता है. इससे न सिर्फ आलू की पैदावार घटती है, बल्कि आलू की गुणवत्ता भी खराब हो जाती है. कई मामलों में किसान को भारी आर्थिक नुकसान उठाना पड़ता है.

झुलसा रोग के शुरुआती लक्षण कैसे पहचानें
अगर आलू की फसल में झुलसा रोग लगने लगता है, तो इसके संकेत सबसे पहले पत्तियों पर दिखाई देते हैं. पत्तियों के किनारों पर भूरे या काले रंग के धब्बे बनने लगते हैं. पत्तियों के नीचे सफेद रंग की फफूंदनुमा परत दिखाई देने लगती है. धीरे-धीरे पत्तियां सूखकर गिरने लगती हैं. अगर समय रहते इलाज न किया जाए, तो तना और आलू के कंद भी सड़ने लगते हैं, जिससे पूरी फसल बर्बाद हो सकती है.

आलू की फसल में सिंचाई का सही तरीका
झुलसा रोग से बचाव के लिए किसानों को खेतों में नमी का संतुलन बनाए रखना बेहद जरूरी है. अगर खेत बहुत ज्यादा सूखा रहेगा या बहुत ज्यादा गीला रहेगा, दोनों ही स्थितियां नुकसानदायक होती हैं. इसलिए किसानों को 10-10 दिनों के अंतराल में हल्की सिंचाई करनी चाहिए. इससे खेत का तापमान संतुलित रहता है और फफूंद के पनपने की संभावना कम हो जाती है.

फफूंदनाशक दवाओं से कैसे करें रोग पर नियंत्रण?
अगर आलू की फसल में फफूंद या झूलसा रोग के लक्षण दिखाई देने लगें, तो किसान तुरंत फफूंदनाशक दवाओं का इस्तेमाल करें. इसके लिए कार्बाइंडा GM, मैंकोजेब और कॉपर ऑक्सिक्लोराइड जैसी दवाओं का पानी में घोल बनाकर फसल पर स्प्रे करना चाहिए. सही समय पर छिड़काव करने से रोग को फैलने से रोका जा सकता है और फसल को बचाया जा सकता है.

आलू की फसल बचाने के तरीके
झुलसा रोग से बचाव का एक आसान और देसी तरीका धुआं विधि भी है. किसान खेत की मेड़ों पर चारों तरफ 2 से 3 दिन के अंतराल में हल्का धुआं करें. इससे खेत का तापमान सामान्य बना रहता है और ओस का असर कम हो जाता है. हफ्ते में कम से कम दो बार यह प्रक्रिया करने से झूलसा रोग लगने की संभावना काफी हद तक खत्म हो जाती है और फसल सुरक्षित रहती है.

कृषि अधिकारी की अहम सलाह
कृषि अधिकारी भगवती प्रसाद मौर्य ने बताया कि ठंड के मौसम में आलू की फसल में अगेती और पछेती झूलसा रोग लगने का खतरा सबसे ज्यादा रहता है. अधिक ओस गिरने से खेतों में फंगस तेजी से फैलता है और यह रोग दो से चार दिनों में पूरी फसल को नुकसान पहुंचा सकता है. उन्होंने किसानों को सलाह दी कि समय-समय पर फफूंदनाशक दवाओं का छिड़काव करें, नियमित अंतराल पर हल्की सिंचाई करें और जरूरत पड़ने पर खेतों की मेड़ों पर धुआं विधि अपनाएं, ताकि आलू की फसल को सुरक्षित रखा जा सके.

Umh News india

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