क्या सच में गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा से मिलता है बैकुंठ?
मथुरा: भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं से जुड़ी ब्रजभूमि में स्थित गोवर्धन पर्वत श्रद्धा और आस्था का बड़ा केंद्र है. हर साल यहां करोड़ों भक्त परिक्रमा लगाने आते हैं. खासतौर पर मुड़िया पूर्णिमा (Mudiya Purnima 2025) के दिन यहां सबसे ज्यादा भीड़ जुटती है. इस बार गोवर्धन का प्रसिद्ध मुड़िया पूर्णिमा मेला 4 जुलाई से 11 जुलाई 2025 तक लगेगा, जबकि 10 जुलाई को मुड़िया पूर्णिमा मनाई जाएगी. मान्यता है कि इस दिन गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा करने से हर मनोकामना पूरी होती है और इंसान को मोक्ष यानी बैकुंठ धाम मिलता है.
कब और क्यों शुरू हुई गोवर्धन परिक्रमा?
पंडित गौरांग शर्मा ने बताया कि, द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण ने इंद्रदेव का घमंड तोड़ने के लिए ब्रजवासियों से इंद्र की पूजा बंद करवा दी थी. इससे नाराज होकर इंद्रदेव ने लगातार कई दिनों तक मूसलधार बारिश कर दी. तब श्रीकृष्ण ने अपनी छोटी उंगली पर गोवर्धन पर्वत उठाकर सभी ब्रजवासियों को बचाया. तभी से गोवर्धन पर्वत को पूजनीय माना जाने लगा और उसकी परिक्रमा करने की परंपरा शुरू हुई.
मुड़िया पूर्णिमा पर गोवर्धन की परिक्रमा करना बहुत शुभ माना जाता है. मान्यता है कि इस दिन परिक्रमा करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं और व्यक्ति को बैकुंठ धाम में जगह मिलती है. करीब 550 साल पहले संत रूप सनातन गोस्वामी गोवर्धन आए थे. उन्होंने यहां परिक्रमा करना शुरू किया. माना जाता है कि परिक्रमा करने के बाद उन्हें मोक्ष की प्राप्ति हुई. तभी से लोग मानते हैं कि जो भी श्रद्धा से मुड़िया पूर्णिमा की परिक्रमा करता है, उसे भगवान श्रीकृष्ण का आशीर्वाद और मोक्ष दोनों मिलते हैं.
मथुरा में मुड़िया पूर्णिमा पर लगने वाले मेले को ‘करोड़ी मेला’ के नाम से भी जाना जाता है. इस बार यह मेला 4 जुलाई से 11 जुलाई 2025 तक चलेगा. वहीं, 10 जुलाई को मुख्य मुड़िया पूर्णिमा का दिन रहेगा, जब सबसे ज्यादा भीड़ उमड़ती है. इस दौरान देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं. भक्त करीब 21 किलोमीटर लंबी परिक्रमा करते हैं.
पंडित गौरांग शर्मा बताते हैं कि गोवर्धन परिक्रमा सिर्फ पूजा नहीं, बल्कि भगवान श्रीकृष्ण के प्रति सच्चा प्रेम और आस्था दिखाने का तरीका है. यही परंपरा द्वापर युग से चली आ रही है, जो आज भी उतनी ही श्रद्धा के साथ निभाई जाती है.