ओपी राजभर? कभी चलाते थे ऑटो, अब बिहार में अकेले दम पर लड़ेगे चुनाव!
“बिहार चुनाव अब हम अपने दम पर लड़ने पर विचार कर रहे हैं, हम मोर्चा बनाकर वहाँ चुनाव लड़ेंगे. अब तक पार्टी ने पहले चरण की 52 सीटों के लिए उम्मीदवारों के नाम तय कर लिए हैं. नोमिनेशन प्रक्रिया आज से शुरू होगी. हम 153 सीटों पर चुनाव लड़ेंगे.”
सोमवार को ओमप्रकाश राजभर ने बिहार विधानसभा चुनाव में एनडीए की और से सीटें न मिलने पर ये प्रतिक्रिया दी है. इससे आगे राजभर ने कहा, “अभी भी समय है, अगर आप हमें अपने साथ रखना चाहते हैं तो हमें 4-5 सीटें दे दीजिए.” आखिर कौन है ओपी राजभर जो बिहार में अपने दम पर 153 सीटों पर चुनाव लड़ने का दम भर रहे हैं.
जैसे की उनके नाम से साफ पता चलता है कि वो राजभर समुदाय से हैं, जो की ओबीसी में आते हैं. राजभर उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, झारखंड, मध्य प्रदेश और राजस्थान में पाई जाने वाली एक जाति है. उत्तर प्रदेश में, उन्हें ओबीसी कैटेगरी में रखा गया है. उन्होंने खुद को नॉन-यादव ओबीसी नेता के तौर पेश किया है. उन्होंने खुद को ओबीसी जातियों के वोट बैंक साथ खुद को मजबूत किया है.
राजभर साधारण परिवार से आते हैं, बचपन गरीबी में बीता. उन्होंने इंटरमीडिएट तक पैदल स्कूल जाया करते थे और कॉलेज में जाकर साइकिल मिली. अपनी पढ़ाई और परिवार की मदद के लिए उन्होंने 1981-1983 के बीच वाराणसी में रात को ऑटो-रिक्शा चलाया. 1983 में वाराणसी के बालदेव डिग्री कॉलेज, बदागांव से ग्रेजुएशन की डिग्री ली. ग्रेजुएशन के बाद वे सुबह-सुबह सब्जी मंडी जाकर खेतों में उगाया सामान बेचते थे.
ओमप्रकाश राजभर, सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के चीफ हैं. उत्तर प्रदेश विधानसभा में उनके 6 विधायक हैं. उत्तर प्रदेश के वाराणसी में जन्में राजभर अपनी राजनीति की शुरूआत 1990 के दशक में बहुजन समाज पार्टी में के साथ की. राजभर दलित राजनेता कांशीराम से प्रभावित थे और उनके बाद ही उन्होंन राजनीति में आने का मन बनाया. इसी समय उन्होंने बीएसपी जॉइन की और वाराणसी के जिला अध्यक्ष बने. 1996 में उन्होंने कोलासला से बीएसपी के टिकट पर पहला विधानसभा चुनाव लड़ा, लेकिन तीसरे स्थान पर रहे.
अपने बयानों की वजह से हमेशा चर्चा में रहने वाले राजभर की पार्टियों से कम ही बनी है. 1996 में मायावती ने भदोही को संत कबीर नगर बनाने का फैसला लिया लेकिन राजभर ने इसका विरोध कर दिया. मायावती से मतभेद बढ़े और उन्होंने बीएसपी छोड़ दी. उन्होंने उन पर राजभर इतिहास को मिटाने और केवल जाटव जाति को बढ़ावा देने का आरोप लगाया. इसके बाद वे अपना दल में शामिल हुए और युवा मोर्चा के राज्य अध्यक्ष बने, लेकिन 2001 में छोड़ दिया.
साल 2002 में उन्होंने एसबीएसपी पार्टी बनाई और दावा किया कि ये राजभर समुदाय के हितों का प्रतिनिधित्व करती है. पार्टी का नाम महाराजा सुहेलदेव के नाम रखा है, जिन्हें हिंदुत्व योद्धा के रूप में चित्रित किया जाता है.
साल 2012 के विधानसभा चुनाव में एसबीएसपी ने 52 सीटों पर चुनाव लड़ा, लेकिन जीत उनके हाथ नहीं लगी. 2014 के लोकसभा चुनाव में एकता दल के साथ गठबंधन किया और सलेमपुर से चुनाव लड़े, लेकिन यहां भी निराश हाथ लगी और राजभर चौथे स्थान पर रहे.
भाजपा के साथ उनका पहला गठबंधन 2014 के लोकसभा चुनावों के दौरान हुआ था, लेकिन उन्हें कोई सीट नहीं मिली. 2017 में, वह बलिया की ज़हूराबाद सीट जीतकर पहली बार विधायक बने.
यूपी में 2017 के विधानसभा चुनाव को देखते हुए राजभर ने 2016 में भाजपा के साथ गठबंधन किया. इस बार एसबीएसपी ने 8 सीटों पर चुनाव लड़ा और 4 जीतीं, इसमें राजभर जाहूराबाद से जीते गए. वे योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री बने और राजभर को पिछड़ा वर्ग कल्याण मंत्री बनाया गया.
योगी आदित्यनाथ सरकार में ओबीसी कोटे में सब-कैटेगरी और 17 पिछड़ी जातियों को एससी में शामिल करने की मांग पर मतभेद हुआ. 2019 में लोकसभा चुनाव से पहले उन्होंने गठबंधन तोड़ा और स्वतंत्र रूप से 40 से अधिक सीटों पर उम्मीदवार उतारे. योगी ने उन्हें मंत्री पद से बर्खास्त कर दिया.
साल 2020 में उन्होंने भागीदारी संकल्प मोर्चा बनाया. इस मोर्चे में असदुदीन औवेसी की पार्टी भी एआईएमआईएम में शामिल हुई, लेकिन यह भी ज्यादा नहीं चली. 2021 में उन्होंने समाजवादी पार्टी (एसपी) के साथ गठबंधन किया. 2022 के विधानसभा चुनाव में एसबीएसपी ने 19 सीटों पर चुनाव लड़ा और 6 जीतीं. हालांकि, चुनाव के बाद अखिलेश यादव से मतभेद हुआ और 2023 में गठबंधन टूट गया.
16 जुलाई 2023 को राजभर ने यू-टर्न लिया और वे फिर से एनडीए में शामिल हो गए. मार्च 2024 में योगी कैबिनेट विस्तार में उन्हें फिर मंत्री पद मिला. लेकिन अब बिहार विधानसभा में ‘तवज्जो’ न मिलने के चलते उन्होंने बिहार में एनडीए से अगल चुनाव लड़ने का मन बना लिया है.
राजभर ओबीसी रिजर्वेशन में सब-कैटेगरी और जाति जनगणना की मांग करते रहे हैं. वे पूर्वांचल में राजभर वोट बैंक को प्रभावित करते हैं, जहां उनकी पार्टी का प्रभाव है. भाजपा के लिए गैर-यादव ओबीसी वोटों को मजबूत करने में जरूरी हैं. हालांकि, उनके लगातार गठबंधन बदलने और विवादास्पद बयानों से विवाद होते रहे हैं, जैसे कि वे खुद को मुख्यमंत्री के बाद यूपी में सबसे शक्तिशाली बताते हैं