एक ही परिवार के सात बच्चे खो बैठे आंखों की रोशनी
उदयपुर. राजस्थान के उदयपुर से 45 किमी दूर झाड़ोल तहसील के लीलावास गांव से दिल दहलाने वाली खबर सामने आई है. एक ही परिवार के सात बच्चे पूजा (20), पायल (18), काजल (15), पुष्कर (8), आशिक (7), खुशी (5) और विक्रम (4) अपनी आंखों की रोशनी खो चुके हैं. भंवरलाल और रमेश कालबेलिया के इन बच्चों की दृष्टि बचपन से धुंधली थी, जो समय के साथ पूरी तरह खत्म हो गई. गरीबी और अशिक्षा ने इन्हें अस्पताल तक पहुंचने से रोका, और सरकारी योजनाएं भी इनके दरवाजे तक नहीं पहुंचीं.
परिवार ने बच्चों की बीमारी को भाग्य का खेल मान लिया. मंदिरों की चौखट पर माथा टेका, लेकिन इलाज का रास्ता नहीं ढूंढा. इस दर्दनाक हकीकत का खुलासा तब हुआ, जब गायत्री सेवा संस्थान की टीम गांव पहुंची. संस्थान के प्रमुख डॉ. शैलेंद्र पंड्या ने परिवार को समझाया और बच्चों को उदयपुर के आरएनटी मेडिकल कॉलेज ले गए.
नेत्र विभाग के प्रमुख डॉ. विजय गुप्ता ने जांच में पाया कि बच्चों के चश्मे का नंबर माइनस 17 से माइनस 18 है. यह बेहद गंभीर स्थिति है. बच्चे हल्का-फुल्का देख सकते हैं, लेकिन रंग नहीं पहचान सकते और तेज रोशनी में आंखें खोलना मुश्किल है. डॉ. गुप्ता ने बताया, “पूर्ण दृष्टि बहाल होने की उम्मीद कम है, लेकिन इलाज शुरू किया गया है.” जयपुर से विशेष लेंस मंगाए जा रहे हैं, और दवाएं दी गई हैं. जब पूजा और काजल से पूछा गया कि आंखें ठीक होने पर सबसे पहले क्या देखना चाहेंगी, तो दोनों ने एक स्वर में कहा, “पापा को.” इन शब्दों ने सबके दिल को झकझोर दिया.
नेत्र विभाग के प्रमुख डॉ. विजय गुप्ता ने जांच में पाया कि बच्चों के चश्मे का नंबर माइनस 17 से माइनस 18 है. यह बेहद गंभीर स्थिति है. बच्चे हल्का-फुल्का देख सकते हैं, लेकिन रंग नहीं पहचान सकते और तेज रोशनी में आंखें खोलना मुश्किल है. डॉ. गुप्ता ने बताया, “पूर्ण दृष्टि बहाल होने की उम्मीद कम है, लेकिन इलाज शुरू किया गया है.” जयपुर से विशेष लेंस मंगाए जा रहे हैं, और दवाएं दी गई हैं. जब पूजा और काजल से पूछा गया कि आंखें ठीक होने पर सबसे पहले क्या देखना चाहेंगी, तो दोनों ने एक स्वर में कहा, “पापा को.” इन शब्दों ने सबके दिल को झकझोर दिया.