शेख हसीना का पहला रिएक्शन : हिम्मत हो तो ICC में करो मुकदमा’
Sheikh Hasina First Reaction: शेख हसीना ने बांग्लादेश कार्ट की ओर से सुनाए गए सजा-ए-मौत के फैसले पर अपनी प्रतिक्रिया दी है. उन्होंने इस फैसले और सारे आरोपों को नकारते हुए कहा है कि ये पक्षपाती और राजनीति से प्रेरित है. शेख हसीना ने कहा कि – ‘मेरे विरुद्ध सुनाए गए ये फैसले एक ऐसे धांधलीपूर्ण ट्रिब्यूनल द्वारा दिए गए हैं, जिसे एक गैर-निर्वाचित सरकार ने स्थापित किया है और चला रही है, जिसका कोई लोकतांत्रिक जनादेश नहीं है.’
उन्होंने फैसले को पक्षपाती और राजनीतिक उद्देश्यों से प्रेरित बताते हुए कहा है कि मेरे लिए फांसी की घृणित मांग करके वे यह साफ दिखा रहे हैं कि अंतरिम सरकार के भीतर मौजूद उग्रवादी तत्व किस तरह से बांग्लादेश की अंतिम निर्वाचित प्रधानमंत्री को हटाना चाहते हैं और अवामी लीग को एक राजनीतिक शक्ति के रूप में समाप्त करना चाहते हैं.
फैसले पर क्या बोलीं शेख हसीना?
फैसले को लेकर शेख हसीना ने कहा कि पिछले वर्ष की जुलाई- अगस्त की घटनाएं हमारे देश के लिए और उन तमाम परिवारों के लिए एक त्रासदी थीं जिन्होंने अपने प्रियजनों को खोया. अव्यवस्था को रोकने के प्रयास में हमने जो कदम उठाए, वे सद्भावना के साथ उठाए गए कदम थे, जिनका उद्देश्य जनहानि को कम करना था. हम स्थिति पर नियंत्रण खो बैठे, लेकिन इसे नागरिकों पर जानबूझकर हमले के रूप में प्रस्तुत करना तथ्यहीन है. ICT के अभियोजकों ने यह दिखाने के लिए कोई ठोस सबूत नहीं दिया कि मैंने लोगों पर घातक बल प्रयोग का आदेश दिया था. जिन ट्रांसक्रिप्ट और ऑडियो फाइलों को साक्ष्य के रूप में पेश किया गया, वे अधूरी और संदर्भ से बाहर थीं. वास्तविकता यह है कि जमीनी स्तर पर संचालन का नियंत्रण सुरक्षा बलों के पास था, जो स्थापित कानूनी प्रोटोकॉल के तहत काम कर रहे थे.
6 से 14 जुलाई के बीच, छात्रों को शांतिपूर्ण प्रदर्शन की अनुमति थी. सरकार ने उनकी सुरक्षा सुनिश्चित की थी. मैंने उनकी सभी मांगें स्वीकार भी की थीं, लेकिन स्थिति जुलाई के में बिगड़ने लगी, विशेष रूप से तब जब प्रदर्शनकारियों ने महत्वपूर्ण संचार और इंटरनेट को बाधित किया. इस अराजकता के दौरान पुलिस स्टेशनों और सरकारी इमारतों को जला दिया गया, हथियार लूट लिए गए और सरकारी प्रतिष्ठानों पर हमले किए गए. इस हिंसा का सामना करते हुए सरकार ने देश की व्यवस्था और संविधान को बचाने, और जान-माल की रक्षा करने के लिए घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय कानून के अनुरूप कार्रवाई की. ICT के अभियोजकों ने अवामी लीग पर सरकारी इमारतों को जलाने का आरोप लगाया, जबकि कई छात्र नेताओं ने सार्वजनिक रूप से इन आगजनी और तोड़फोड़ की घटनाओं की जिम्मेदारी स्वीकार की है. हसीना ने ये भी आरोप लगाया कि जिस यूएन रिपोर्ट का हवाला दिया जा रहा है, वो ऐसे राज्यकर्मियों की गवाही पर आधारित हैं, जो खुद दुराचार के आरोपों में फंसे थे और अंतरिम सरकार को खुश करने के लिए बयान दिए. वे रिकॉर्ड, जो अवामी लीग को निर्दोष साबित कर सकते थे और अंतरिम सरकार से जुड़े लोगों को फंसा सकते थे, UN निरीक्षकों से छुपाए गए. हिंसा के कई अन्य रहस्यमय पहलू अब भी अनसुलझे हैं. खासकर यह दावा कि शुरुआती घटनाओं में भीड़ को उकसाने वाले एजेंट शामिल थे. गवाहों और फोरेंसिक साक्ष्यों से संकेत मिलता है कि ये एजेंट सैन्य-ग्रेड हथियारों, जैसे 7.62 मिमी गोलियों से लैस थे, जिनसे उन्होंने पुलिस और नागरिकों पर हमले किए, हिंसा को बढ़ाया और सरकार के प्रति जनाक्रोश भड़काया.

