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श्रीकृष्ण-जन्मभूमि विवाद, SC से मुस्लिम पक्ष को स्टे नहीं

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सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार (17 सितंबर) को मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह विवाद मामले में मुस्लिम पक्ष की याचिका पर स्टे नहीं दिया। मुस्लिम पक्ष ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस फैसले को चुनौती दी थी, जिसमें हिंदू पक्ष की 18 याचिकाएं एक साथ सुनने का फैसला सुनाया था।

श्रीकृष्ण जन्मभूमि के पक्षकार एडवोकेट महेंद्र प्रताप सिंह ने कहा- मुस्लिम पक्ष गलत तरीके से सुप्रीम कोर्ट गया। हमारी तरफ से ऑब्जेक्शन दाखिल किया गया था। पहले इनको (मुस्लिम पक्ष) हाईकोर्ट की डबल बेंच में याचिका दाखिल करनी चाहिए थी।

सुप्रीम कोर्ट में 4 नवंबर को मामले में सुनवाई होगी। कोर्ट ने कहा- इस दौरान मुस्लिम पक्ष चाहे तो हाईकोर्ट की डबल बेंच में याचिका दाखिल कर सकता है।

दरअसल, 1 अगस्त को हाईकोर्ट ने श्रीकृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह विवाद से जुड़ी हिंदू पक्ष की 18 याचिकाएं एक साथ सुनने का फैसला सुनाया था। कोर्ट का कहना था कि सभी याचिकाएं एक नेचर की हैं। एक साथ सुनी जाएंगी।

हालांकि, मुस्लिम पक्ष का तर्क था कि हिंदू पक्ष की याचिकाएं सुनने योग्य नहीं है। ऐसे में मुस्लिम पक्ष ने फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। इसके बाद 6 अगस्त को हिंदू पक्ष ने कैविएट दाखिल की थी।

कहा था- हमें सुने बिना मुस्लिम पक्ष की अर्जी पर एकतरफा आदेश न दें। आज याचिका पर पहली बार सुनवाई हुई।

हिंदू पक्षकारों के 11 तर्क

  • ढाई एकड़ में बनी शाही ईदगाह कोई मस्जिद नहीं है।
  • ईदगाह में केवल सालभर में 2 बार नमाज पढ़ी जाती है।
  • ईदगाह का पूरा ढाई एकड़ एरिया भगवान कृष्ण का गर्भगृह है।
  • सियासी षड्यंत्र के तहत ईदगाह का निर्माण कराया गया था।
  • प्रतिवादी के पास कोई ऐसा रिकॉर्ड नहीं है।
  • मंदिर तोड़कर मस्जिद का अवैध निर्माण किया गया है।
  • जमीन का स्वामित्व कटरा केशव देव का है।
  • बिना स्वामित्व अधिकार के वक्फ बोर्ड ने बिना किसी वैध प्रक्रिया के वक्फ संपत्ति घोषित कर दी।
  • भवन पुरातत्व विभाग से संरक्षित घोषित है।
  • पुरातत्व विभाग (ASI) ने नजूल भूमि माना है। इसे वक्फ संपत्ति नहीं कह सकते।

मुस्लिम पक्षकारों की दलीलें

  • समझौता 1968 का है। 60 साल बाद समझौते को गलत बताना ठीक नहीं। मुकदमा सुनवाई लायक नहीं।
  • प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 के तहत मुकदमा आगे ले जाने के काबिल नहीं है।
  • 15 अगस्त 1947 वाले नियम के तहत जो धार्मिक स्थल जैसा है वैसा रहे, उसकी प्रकृति नहीं बदल सकते।
  • लिमिटेशन एक्ट, वक्फ अधिनियम के तहत इस मामले को देखा जाए।
  • वक्फ ट्रिब्यूनल में सुनवाई हो, यह सिविल कोर्ट में सुना जाने वाला मामला नहीं।

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