अनूठा मंदिर : शरद पूर्णिमा की रात में चंद्रदेव की पहली किरण छूती है भगवान के चरण
गढाकोटा (राधेलाल साहू), वैसे तो पूरा भारत देश में बुंदेलखंड अपने अलग इतिहास और परम्पराओं के लिए जाना जाता है। वहीं सागर जिले के गढ़ाकोटा भी अपने आप में अनूठा है। यहां पर एक ऐसा प्राचीन मंदिर है। जहां शरद पूर्णिमा की रात चंन्द्रदेव की पहली किरण भगवान के चरणों को छूती है। इस मंदिर का इतिहास करीब 3 सौ साल पहले पुराना बताया जाता है।
कहा जाता है की गढ़ाकोटा के राजा मर्दन सिंह जूदेव के किले से एक ही बनावट की तीन मूर्तियो को गढ़ाकोटा नगर में स्थित तीन अलग-अलग मंदिरों में विराजमान कर स्थापना की गई थी। जिसका उल्लेख मंदिरों के ट्रस्ट में भी है। नगर के नदी पार तिलक वार्ड में यह अतिप्राचीन मंदिर है। ऐसा कहा जाता है। है की इसका निर्माण 3 सौ साल पहले रमाबाई मिश्रा ने कराया था। जिसमें भगवान लक्ष्मीनारायण की प्राचीन मूर्ति है। इसकी विशेषता ये है कि एक मूर्ति में भगवान गरूण, विष्णु और मां लक्ष्मी एक ही पत्थर पर हैं। जिन्हे एक ही लक्ष्मीनारायण के रूप में भक्त पूजते हैं।
कहा जाता है की मंदिर के अंदर एक गुफा थी जो गढ़ाकोटा किले से जुड़ी थी। मंदिर में एक विशेष खासियत यह है कि मंदिर के शिखर पर बनी एक खिड़की से देखने पर सीधे भगवान लक्ष्मीनारायण जी के चरणों के दर्शन होते हैं यही कारण है कि चंन्द्रदेव शरद पूर्णिमा की रात अपनी पहली किरण से सीधे भगवान के चरण छूते हैं। गढ़ाकोटा किले से आई ये मूर्तियां नगर के तीन अलग-अलग मंदिरों तिलक वार्ड में रमाबाई मंदिर, रहस मेला स्थित शाला में श्रीदेव लक्ष्मीनारायण मंदिर और बाजार स्थित मिश्राइन मंदिर में विराजमान हैं। जो एक ही जैसी हैं।
इसको लेकर पंडित जीतेश मिश्रा ने जानकारी दी बुजुर्ग ने बताया है कि मंदिर कि खिड़की जो सूर्य व चंन्द्रमा कि किरण आती है वह सीधी श्री देव लक्ष्मीनारायण जी के चरणों पर आती है ये तीन मूर्तियां हैं जो एक समान है एक स्वरूप कि है जो राजा मर्दन सिंह जूदेव के किले से लाई गई थी जिन्हें नगर के अलग मंदिरों मे विराजमान किया गया था। लगभग 3 सौ वर्ष पूर्व रमाबाई मिश्रा द्वारा तिलक वार्ड में मंदिर बनवाया गया था। साथ ही रहस मेले में लक्ष्मीनारायण जी का मंदिर है और बाजार में मिश्राइन मंदिर है तीनों जगह एक जैसी ही मूर्तियां विराजमान हैं किले से आई मूर्तियों के संबंध में ट्रस्ट में भी उल्लेख है।