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1971 में पाकिस्तान से युद्ध : रात में ब्लैकआउट, सायरन की आवाज, केवल रेडियो का सहारा

  • 1971 के युद्ध में शाम को ब्लैकआउट होता था.
  • एयर रेड सायरन बजते थे, लोग बंकर में जाते थे.
  • राशन की लंबी लाइनें और कालाबाजारी होती थी.

ज्यादातर लोगों को याद भी नहीं होगा कि जब 54 साल पहले वर्ष 1971 में भारत और पाकिस्तान के बीच लड़ाई छिड़ी थी तो देशभर में लोग किस तरह से सावधानियां बरतते थे. क्या माहौल हुआ करता था. बहुत से लोग ऐसे भी हैं, जो तब बच्चे रहे होंगे और अब वृद्ध या प्रौढ़ रहे होंगे. देश की बहुत बड़ी जनसंख्या तब पैदा भी नहीं हुई थी. प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की “दुर्गा” जैसी छवि बनी. उनके नेतृत्व को कड़ा और निर्णायक माना गया.

1971 के भारत-पाक युद्ध के समय शाम होते ही घरों में अंधेरा छा जाता था. आमतौर पर लोगों के घरों की लाइट नहीं जला करती थी, क्योंकि ये हिदायत थी कि शहरों को अंधेरा रखा जाए ताकि अगर दुश्मन का विमान वहां आ भी जाए तो उसको नीचे कुछ भी नजर नहीं आए. संवेदनशील इलाकों में रहने वाले नागरिकों को एयर रेड प्रोटोकॉल समझाए गए कि हमला होने पर कहां छिपना है, कैसे बत्ती बंद करनी है.

शाम से बंद हो जाती थीं लाइटें, हर शहर में ब्लैकआउट
बड़े शहरों जैसे दिल्ली, मुंबई, कोलकाता और अमृतसर में रात के समय ब्लैकआउट किया जाता था. लोग गलती से भी घरों की लाइट नहीं जलाते थे. यही नहीं घरों की खिड़कियों पर काले रंग के परदे लगवाए गए थे. स्ट्रीट लाइट्स बंद कर जाती थीं. घुप्प अंधेरा हो जाता था. ऐसा इसलिए किया जाता था कि दुश्मन के हवाई जहाज़ शहर की स्थिति न जान सकें. हालांकि ऐसा भी नहीं था कि हर जगह पूरा घुप्प अंधेरा ही रहता था, बहुत कम जरूरी जगहों पर रात के समय सिर्फ ज़रूरी सार्वजनिक लाइटें जलाई जातीं थीं

हर शहर में एयर रेड सायरन लगाए गए थे. हमला होने पर सायरन बजता. लोगों को तुरंत बंकर या सुरक्षित स्थान में जाने की सलाह दी जाती थी. ये एक बड़ी बिजली से चलने वाली सायरन मशीन होती है, जो बेहद तेज़ आवाज़ करती है. इसकी आवाज दूर तक सुनी जा सकती है. आमतौर पर फैक्ट्री और खान वाले इलाकों में ये साइरन शिफ्ट शुरू होने की सूचना अब भी देते हैं. लेकिन उनकी आवाज अलग तरह की होती है.

सीमावर्ती इलाकों में बंकर में शरण
सीमावर्ती इलाकों में बम शेल्टर (सुरक्षित बंकर) बनाए गए थे, खासकर अमृतसर, जम्मू और श्रीनगर जैसे शहरों में. ये जमीन के नीचे बनाए गए थे, ताकि इन पर किसी तरह के बम का असर नहीं हो. उस युद्ध में बड़े पैमाने पर पंजाब, राजस्थान, जम्मू और बंगाल के बॉर्डर इलाकों के कई गांवों को खाली करवाया लिया गया था.

तब सूचना रेडियो से ही मिलती थी
54 साल पहले 1971 में लोगों की जानकारी का साधन रेडियो ही होते थे. भारत में ऑल इंडिया रेडियो (AIR) युद्ध का मुख्य सूचना माध्यम था. इस पर हर घंटे युद्ध बुलेटिन, सरकारी घोषणाएं और देशभक्ति गीत चलते रहते थे. बड़े शहरों में अफवाह नियंत्रण केंद्र बनाए गए ताकि झूठी खबरें और दहशत फैलने से रोका जा सके. अब तो खैर सूचना का माध्यम बहुत बढ़ गया है. तुरंत खबरें पहुंचाने वाले टीवी, इंटरनेट की पहुंच घर घर तक है.

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