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Religion

अपनी तीसरी आंख क्यों नहीं खोलते थे कृष्ण, जब दो बार खोली तो आ गई कैसी कयामत

क्या आपको मालूम है कि सर्वशक्तिमान भगवान कृष्ण के एक तीसरी आंख भी थी. जिसे वह नहीं खोलते थे. लेकिन दो बार ऐसे मौके आए जब उन्होंने अपनी तीसरी आंख खोल ली. तब पांडवों के ऊपर आती हुई कयामत बच गई. क्या थे वो दोनों मामले.

कृष्ण के तीसरी आंख खोलने का एक प्रसंग महाभारत के कर्ण पर्व में आता है, जब वे अर्जुन को अपना विराट रूप दिखाते हैं. कुछ लोकप्रिय कथाओं और भागवत परंपराओं में इसका जिक्र है.

तब कृष्ण ने तीसरी आंख खोली

जब कर्ण और अर्जुन का युद्ध चल रहा था, तब कर्ण के पास इंद्र द्वारा दिया गया शक्तिशाली अस्त्र था, जिसे वह अर्जुन पर चलाने वाला था. कृष्ण जानते थे कि यह अस्त्र अर्जुन के लिए घातक हो सकता है. कहा जाता है कि तब कृष्ण ने अपनी तीसरी आंख खोली, जिसे दिव्य नेत्र कहा जाता है. जैसे ही वो आंख खुली, तो एक तेज प्रकाश निकला. इससे कर्ण का ध्यान भटक गया.

इसी क्षण का फायदा उठाकर अर्जुन ने कर्ण पर प्रहार किया. उसका वध कर दिया. लेकिन अगर उस दिन वो अस्त्र चल गया होता तो शायद अर्जुन नहीं बच पाते. कृष्ण की तीसरी आंख ब्रह्मांडीय शक्ति और दिव्य ज्ञान का प्रतीक है. इस घटना में कृष्ण ने अपने विष्णु स्वरूप का आभास दिया, जिससे कर्ण समेत सभी योद्धा विस्मित हो गए.

हालांकि ये बात अर्जुन पहले भी समझते थे लेकिन अब पुख्ता तौर पर उनकी समझ में आ गया कि कृष्ण सिर्फ एक सारथी नहीं, बल्कि खुद भगवान हैं.

जब अश्वतथामा के खिलाफ तीसरा नेत्र खुला

महाभारत में अश्वत्थामा और कृष्ण के बीच एक ऐसा ही एक प्रसंग आता है, जहां कुछ कथाओं में कृष्ण अपना तीसरा नेत्र खोलते हैं. यह घटना सौप्तिक पर्व (रात्रि हत्याकांड) के बाद घटी, जब अश्वत्थामा ने ब्रह्मास्त्र छोड़कर पांडवों के वंश को नष्ट करने का प्रयास किया था. पहले तो अश्वतथामा ने पांडवों के कैंप में घुसकर शिखंडी और पांचों पांडवों पुत्रों की हत्या कर दी. फिर वह वहां से निकल भागा.

इससे बच गया पांडवों का वंश

जब कृष्ण और पांडवों ने उसे खोज निकाला तो उसने पांडवों के समूचे वंश का नाश करने के लिए उत्तरा के गर्भ में पल रहे परीक्षित को मारने के लिए ब्रह्मास्त्र चलाया. ये अगर सही लक्ष्य पर लगता तो पांडवों का वंश खत्म हो जाता. बाद में इस गर्भ की रक्षा के बाद उत्तरा के गर्भ से परीक्षित ने जन्म लिया, जो फिर हस्तिनापुर का राजा बना.

तब कृष्ण को इसे रोकने के लिए अपनी तीसरी आंख खोलनी पड़ी. जब कृष्ण ने अश्वत्थामा के ब्रह्मास्त्र को रोकने के लिए तीसरा नेत्र खोला, तो उसकी ऊर्जा से पृथ्वी कांप उठी थी. हरिवंश पुराण और क्षेत्रीय लोककथाओं के साथ महाभारत में भी ये बताया गया है कि कृष्ण ने अपनी दिव्य शक्ति प्रकट की और तीसरा नेत्र खोला. कृष्ण ने नरकासुर के वध के लिए भी अपना तीसरा नेत्र खोला था.

उनके तीसरे नेत्र से निकली ब्रह्मांडीय ऊर्जा ने अश्वत्थामा के ब्रह्मास्त्र को निष्क्रिय कर दिया. इसके बाद अश्वतथामा ने समर्पण कर दिया. उसने अपनी मस्तक मणि कृष्ण को दे दी और वहां से चला गया. हालांकि इसी समय उसे ये शाप भी मिला कि उसे कभी मुक्ति नहीं मिलेगी. वह पृथ्वी पर हमेशा भटकता रहेगा. कृष्ण अपना तीसरा नेत्र क्यों बंद रखते थे

भगवान कृष्ण के तीसरे नेत्र (दिव्य नेत्र) को बंद रखने के पीछे गहरे आध्यात्मिक और लौकिक कारण थे. कृष्ण का तीसरा नेत्र ब्रह्मांडीय शक्ति, ज्ञान और विनाशक ऊर्जा का प्रतीक है. इसे शिव के तीसरे नेत्र (ज्ञान और प्रलय का स्रोत) और विष्णु के सुदर्शन चक्र (संहारक शक्ति) का मिलाजुला रूप माना जाता था.

कृष्ण का तीसरा नेत्र अनियंत्रित विनाश ला सकता था. जैसे शिव के तीसरे नेत्र से खुलने पर प्रलय आ सकती थी, वैसे ही कृष्ण की यह शक्ति समस्त ब्रह्मांड को क्षणभर में भस्म कर सकती थी. अगर कृष्ण अपना तीसरा नेत्र हमेशा खुला रखते तो उनकी दिव्यता मनुष्यों के लिए असहनीय हो जाती. कृष्ण ने मनुष्यों को यह सिखाया कि शक्ति का दुरुपयोग नहीं करना चाहिए.

भगवान शिव ने कई बार खोला था तीसरा नेत्र

पौराणिक कथा के अनुसार, जब भगवान शिव गहन ध्यान में थे, तब कामदेव ने देवी पार्वती के अनुरोध पर उनके ध्यान को भंग करने की कोशिश की. इससे शिव क्रोधित हो गए और उन्होंने अपनी तीसरी आंख खोल दी, जिसकी ज्वाला से कामदेव भस्म हो गए. यह घटना बताती है कि तीसरी आंख क्रोध और अज्ञान के विनाश का प्रतीक है.

समुद्र मंथन के दौरान विष पीने के बाद: जब देवता और दानव मिलकर समुद्र मंथन कर रहे थे, तब उसमें से हलाहल नामक भयंकर विष निकला. यह विष पूरी सृष्टि को नष्ट कर सकता था. सृष्टि को बचाने के लिए भगवान शिव ने उस विष को पी लिया. यह विष उनके गले में रुक गया और उनका गला नीला पड़ गया, इसलिए उन्हें नीलकंठ भी कहा जाता है. इस घटना के बाद, जब विष का प्रभाव उनके शरीर पर हो रहा था, तब उन्होंने अपनी तीसरी आंख का उपयोग अपनी ऊर्जा को नियंत्रित करने के लिए किया.

एक और कथा के अनुसार, अंधकासुर नाम के एक असुर ने घोर तपस्या करके यह वरदान प्राप्त कर लिया था कि उसके शरीर से निकलने वाले रक्त की हर बूंद से एक और अंधकासुर पैदा हो जाएगा. जब वह भगवान शिव से युद्ध कर रहा था, तब शिव ने अपनी तीसरी आंख का उपयोग करके उसके रक्त को सोख लिया, जिससे नए असुर पैदा नहीं हुए और शिव ने उसका वध कर दिया.

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