क्या अब पानी से चलेगी कार, जापान ने तो चलाकर दिखा दी
क्या ऐसा होगा कि भविष्य में कार को चलाने के लिए ना तो पेट्रोल की जरूरत होगी और ना ही डीज़ल की और ना सीएनजी की बल्कि ये कार उस ईंधन से चलेगी, जिस पानी कहते हैं. जापान समेत कई देशों में लोगों ने ऐसी कारें बनाने का दावा तो किया है. हालांकि दावे के बाद भी ऐसी कार अभी बाजार में नहीं आ पाई है. तकनीक स्तर पर अगर लोगों के दावे सही हो गए तो पानी से चलने वाली कार दुनिया की सबसे बड़ी गेम चेंजर कार हो जाएगी. आखिर कुछ साल पहले तक तो रेल गाड़ी को पानी की भाप से चलने इंजन ही तो खींचते थे.
पिछले दिनों आस्ट्रेलिया और इजरायल के संयुक्त उपक्रम ने भी पानी से चलने कार बनाने की घोषणा की थी, जो इजरायली तकनीक से हाइड्रोजन पर आधारित होगी. वैसे अब तक कई कंपनियों ने पानी से चलने वाली कार की तकनीक ईजाद कर लेने का दावा किया लेकिन इसकी तकनीक में अभी कई अड़चनें हैं.
पानी से चलने वाली कार बनाने का दावा
वर्ष 2002 में जेनेसिस वर्ल्ड एनर्जी ने घोषणा की थी कि उसने एक ऐसी गाड़ी तैयार की है जो हाइड्रोजन और ऑक्सीजन को अलग करके और फिर उसे पानी के रूप में पुनर्संयोजित करके ऊर्जा प्राप्त करेगी. कम्पनी ने इसके लिए निवेशकों से 25 लाख डॉलर भी लिए लेकिन ये कार तो सड़क पर नहीं उतर पाई.
वर्ष 2008 में एक जापानी कम्पनी जेनपेक्स ने दावा किया कि उनकी गाड़ी केवल पानी और हवा पर चलने में सक्षम है. हालांकि इस कार पर काफी काम की करने की जरूरत है.
क्या होता है जीवाश्म ईंधन
अब तक कारें आमतौर पर पेट्रोल, डीजल और गैस से चलती रही हैं. इन्हें जीवाश्म ईंधन भी कहा जाता है. पेट्रोलियम ईंधन हाइड्रोकार्बन से बने होते हैं. हाइड्रोकार्बन अणुओं में अधिकतर कार्बन और हाइड्रोजन परमाणु होते हैं.साथ ही इनमें कुछ अन्य तत्व जैसे ऑक्सीजन भी मौजूद रहते हैं. हां ये जरूर है कि ये सभी कारें वायु प्रदूषण को तो तमाम प्रावधानों के बाद भी बढ़ाती ही हैं.
कैसे जीवाश्म ईंधन से पैदा होती है ऊर्जा
पेट्रोल और डीज़ल ही नहीं बल्कि लकड़ी, कोयला, कागज़ आदि में हाइड्रोकार्बन होते हैं. इनको जलाकर ऊर्जा में बदला जाता है. जब आप हवा में हाइड्रोकार्बन जलाते हैं, तो उसके अणु टूट जाते हैं. ये फिर ऑक्सीजन के साथ मिलकर कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) गैस और पानी (H2O) बनाते हैं. इस क्रिया अणुओं के टूटने और जुड़ने से जो ऊर्जा मुक्त होती है, वो गर्मी के रूप में बाहर निकलती है. इसे ज्वलन (combustion) कहा जाता है. इससे काफी मात्रा में ऊर्जा पैदा होती है.
कब पहली बार ऊर्जा के रूप को इंसान ने जाना
हज़ारों-लाखों वर्षों से हाइड्रोकार्बन के उपयोग से ऊर्जा तैयार हो रही है. पहली बार ये तब पैदा हुई जब इंसान आग का इस्तेमाल करना सीखा. गाड़ियों को चलाने के लिए ज़रूरी है कि यह ऊर्जा गर्मी के रूप में नहीं बल्कि ऐसे रूप में पैदा हो, जिससे यंत्रों को चलाया जा सके. गाड़ियों में पेट्रोल या डीज़ल की ज्वलन प्रक्रिया बन्द कनस्तर यानी इंजन में होती है. ये इंजन अपना काम इस तरह करते हैं कि ज्यादा से ज्यादा ऊर्जा का इस्तेमाल करते हैं.
क्या पानी को ईंधन की तरह जलाया जा सकता
वहीं पानी को ईंधन की तरह जलाया नहीं जा सकता. दरअसल पानी की कोई रासायनिक प्रक्रिया नहीं है, जिसकी मदद से पानी को ईंधन के रूप में इस्तेमाल किया जाए. अलबत्ता पानी जब गरम भाप में बदलता है तो जरूर ऊर्जा पैदा करता है लेकिन इस ऊर्जा के लिए पानी गरम करने के लिए भी कोयले या दूसरे ईंधन की जरूरत होती है, लिहाजा इस प्रक्रिया से कारें चलेंगी तो जरूर लेकिन उन्हें आकार में बड़ा करना होगा.
तो फिर स्टीम इंजन कैसे चलते थे
ये बात सही है कि भाप का इंजन स्टीम यानि भाप की ताकत के जरिए चलता था लेकिन उसमें बड़े पैमाने पर लगातार कोयला डालना होता था. इसी कारण इस तकनीक की जगह फिर बिजली या डीजल के इंजनों ने ली.
कब पानी से पैदा होती है ऊर्जा
जब पानी बहुत ताकत से गिराया जाता है तो ऊर्जा पैदा होती है, जिसका इस्तेमाल पनबिजली संयंत्रों या बांध में किया जाता है. बड़े-बड़े बांधों में काफी ऊंचाई से पानी टरबाइन पर गिराया जाता है. टरबाइन घूमने से बिजली उत्पन्न होती है. लेकिन गाड़ी में ऐसी ऊंचाई कहां से लाई जाए, ऐसा करना मुश्किल होगा. शायद वैज्ञानिक इसके लिए किसी नई तकनीक की खोज में हैं और दिमाग लड़ा रहे हैं.
पानी से चलने वाली गाड़ी में खतरा भी होगा
मान लीजिए आपको पानी से चलने वाली गाड़ी बनानी है तो सबसे पहले आपको एक ऐसे उपकरण की जरूरत होगी, जो पानी के अणुओं को तोड़ सके और ऑक्सीजन एवं हाइड्रोजन को अलग कर सके. दोनों गैस को अलग-अलग टैंक में रखना होगा. इसके बाद उनके लिए दहन प्रणाली की जरूरत होगी, जिससे दोनों को जलाया जा सका.