बूस्टर डोज : बिहार में नीतीश कुमार की सुनामी
कट्टा, कुशासन, करप्शन. जंगलराज की निशानियां. मासूम गोलू का अपहरण और उसके टुकड़े-टुकड़े होने की लोमहर्षक कहानी. पीएम मोदी ने बिहार चुनाव प्रचार में गिन गिन कर लालू प्रसाद यादव को उस कालखंड को याद किया जिसे एनडीए जंगलराज कहती है. बिहार विधानसभा चुनाव 2025 रिजल्ट और रुझान से साबित होता है कि तेजस्वी यादव अपने पिता के शासनकाल पर उठे सवाल के बोझ तले दबे हुए हैं. उधर ‘टाइगर अभी जिंदा है’. ये पोस्टर जेडीयू के दफ्तर के बाहर कल यानी गुरुवार को दिखा. ये एक संदेश है बिहार के सीएम नीतीश कुमार के बारे में. कहा जाता है कि जब कोई नीतीश कुमार को कमजोर आंकता है तब वो कहीं ज्यादा ताकतवर होकर निकलते हैं. नीतीश कुमार की उपलब्धियों पर जनता का भरोसा है. उसके आगे तेजस्वी यादव के वादे बौने साबित हो गए. ताजा रुझान 2010 के चुनाव परिणाम की याद दिला रहे हैं. एनडीए 190 सीटों पर आगे है. उधर महागठबंधन 50 सीटों के आस-पास सिमटा हुआ है.मतलब लालू प्रसाद यादव की पार्टी अपने इतिहास की दूसरी सबसे बड़ी हार की तरफ बढ़ती हुई दिखाई दे रही है. कांग्रेस का हाल ये है कि कुटुंबा से प्रदेश अध्यक्ष राजेश राम पीछे चल रहे हैं. यहां तक की लालू के लाल तेजस्वी यादव राघोपुर से पीछे हो गए थे. हो सकता है अगले कुछ राउंड में वो आगे हो जाएं लेकिन नीतीश कुमार की वापसी नहीं रोक सकते.
कांग्रेस का बिहार से सूपड़ा साफ, क्या सीएम फेस दे गया नुकसान
बिहार चुनाव में इस बात की चर्चा खूब होती रही कि दोनो अलायंस में सीएम फेस कौन है. तेजस्वी यादव ये कहते रहे कि अमित शाह ने नीतीश कुमार को सीएम घोषित नहीं किया है तो उधर तेजस्वी को लेकर कांग्रेस ने भी अंत तक चुप्पी साधी रखी. इसका मकसद था ज्यादा से ज्यादा सीटें अपने खाते में लेना. आखिरकार कांग्रेस को 61 सीटें मिली और उसने कुछ और सीटों पर दोस्ताना फाइट जारी रखा. तब जाकर कृष्णा अल्लावरू ने कहा कि तेजस्वी यादव ही महागठबंधन के सीएम फेस हैं. इससे एनडीए खेमा उत्साहित हो गया. ये कहा जाने लगा कि तेजस्वी का चेहरा एनडीए को फायदा पहुंचाएगा.
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में जब एनडीए ने सीट शेयरिंग फॉर्मूला सार्वजनिक किया तो कई तरह के चर्चे होने लगे. चिराग पासवान को 29 सीटें क्यों दी गई? आज जब बिहार चुनाव नतीजे सामने आ रहे हैं तो अमित शाह – पीएम मोदी की रणनीति निशाने पर दिखाई दे रही है. चिराग न केवल 10 से ज्यादा सीटों पर आगे हैं बल्कि पूरे अलायंस को मदद पहुंचा रहे हैं. मगध और शाहाबाद के इलाके में जेडीयू शानदार परफॉर्म कर रही है. जेडीयू 70 से ज्यादा सीटों पर आगे है. पिछले चुनाव में ये सिर्फ 43 सीटों पर सिमट गई थी. तब जेडीयू के खाते की लगभग सभी सीटों पर चिराग पासवान ने उम्मीदवार उतार दिए थे. इस बार चिराग ने गेम पलट दिया. नीतीश कुमार की पार्टी को संजीवनी मिल गई.
बिहार चुनाव परिणाम : नीतीश कुमार जब पहली बार मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठे तो 2006 में लड़कियों के लिए साइकिल योजना लाए. नौवीं क्लास की लड़कियों को मुफ्त में साइकल दी जाती है. इसने ड्रॉप आउट रेट को कम किया. आज भी आप गांव की सड़कों पर स्कूल ड्रेस में साइकल से जाती लड़कियों की कतार देख सकते हैं. ये एक सुखद बदलाव है. इसी के साथ नीतीश सरकार ने बच्चों के लिए किताबें और पोशाक के लिए पैसे देने शुरू किए. जरा सोचिए 2006 में जिन महिलाओं को साइकल मिली होगी उनमें से कई तो अगली पीढ़ी को संवार रही होंगी.
लालू प्रसाद यादव ने सात साल के लिए बिहार की बागडोर भले ही राबड़ी देवी के हाथों में दे दी लेकिन सूबे की महिलाओं की जीवन स्थिति में कोई खास बदलाव नहीं हुआ. ये सच है कि राबड़ी ने पहली बार महिलाकर्मियों को पीरिडय लीव्स की सुविधा दी. लेकिन इस सिंबोलिक काम के अलावा आर्थिक उत्थान के काम नहीं हुए. साथ ही कानून-व्यवस्था एक बड़ी समस्या थी. नीतीश कुमार ने इसे पलट दिया. इस चुनाव में भी अगर एनडीए का हर नेता ये कहता है कि आज महिलाएं आधी रात में भी पटना की सड़कों पर घूमती है, तो इससे बदलाव का अंदाजा लगाया जा सकता है.
लग रहा है कि जीविका दीदियों ने एनडीए को आगे रखने में अहम भूमिका निभाई है. नीतीश कुमार ने स्वंय सहायता समूह के तौर पर जीविका का गठन किय था जिसकी शाखाएं आज गांव-गांव तक हैं. एक करोड़ से ज्यादा महिलाएं इनसे जुड़ी हुई हैं. इन्हें बेहद कम ब्याज दर पर पैसा मिलता है. फिर गांव में कमेटी बनाकर जरूरतमंद महिलाओं को दिया जाता है. ये पहले सी सफल मॉडल था. अब दस हजार के टॉप अप ने इसे और प्रोत्साहित किया है. अगर इस सीड मनी से किसी महिला ने कोई रोजगार खड़ा किया तो उसे दो लाख रुपए तक की सहायता और दी जाएगी.

