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Health

हाई कोलेस्ट्रॉल की जिंदगीभर के लिए होगी छुट्टी !

PCSK9 Gene Therapy for Cholesterol: हाई कोलेस्ट्रॉल की समस्या अब कॉमन हो गई है. बड़ी संख्या में लोग कोलेस्ट्रॉल बढ़ने से परेशान हैं. कोलेस्ट्रॉल लेवल सामान्य से ज्यादा हो जाए, तो इससे हार्ट डिजीज का खतरा बढ़ जाता है. यही वजह है कि कोलेस्ट्रॉल को कंट्रोल करना बहुत जरूरी होता है. शरीर में जमा बैड कोलेस्ट्रॉल को कंट्रोल करने के लिए अभी तक स्टैटिन जैसी दवाएं रोज लेनी पड़ती हैं. ये दवाएं कोलेस्ट्रॉल को कंट्रोल करने में मदद करती हैं और हार्ट डिजीज से बचाती हैं. हालांकि वैज्ञानिकों ने बैड कोलेस्ट्रॉल से छुटकारा दिलाने के लिए नया तरीका खोज निकाला है. इस तकनीक को जीन एडिटिंग या जीन-सायलेंसिंग कहा जा रहा है. यह तकनीक सिर्फ एक बार के इलाज से लंबे समय तक बैड कोलेस्ट्रॉल को कम कर सकती है. यह तकनीक डीएनए को स्थायी रूप से नहीं बदलती, बल्कि एपिजेनेटिक एडिटिंग के जरिए जीन के एक्सप्रेशंस को कंट्रोल करती है. यह खोज भविष्य में हार्ट डिजीज की रोकथाम में क्रांतिकारी हो सकती है.

न्यूज मेडिकल लाइफ साइंसेज की रिपोर्ट बताती है कि हमारे शरीर में कोलेस्ट्रॉल दो तरह का होता है. एक LDL यानी बैड कोलेस्ट्रॉल और दूसरा HDL यानी गुड कोलेस्ट्रॉल. LDL का स्तर बढ़ने पर दिल की बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है. PCSK9 नामक जीन LDL रिसेप्टर्स को तोड़कर कोलेस्ट्रॉल को कंट्रोल करने में बाधा डालता है. वर्तमान में पीसीएसके9 को कंट्रोल करने के लिए दवाएं और एंटीबॉडी दी जाती हैं, लेकिन इन्हें बार-बार लेना पड़ता है. इस नई रिसर्च में वैज्ञानिकों ने PCSK9 को एपिजेनेटिक एडिटिंग द्वारा साइलेंस करने की तकनीक डेलवप की है. एपिजेनेटिक एडिटिंग का मतलब जीन को बिना डीएनए को बदले ऑन या ऑफ करना है. इस तकनीक से जीन को इनएक्टिव कर दिया जाता है, जिससे कोलेस्ट्रॉल कंट्रोल रहता है.

वैज्ञानिकों ने इसे PCSK9-EE नाम दिया गया है. इसे एक बार शरीर में इंजेक्ट करने पर यह लंबे समय तक पीसीएसके9 को इनएक्टिव रख सकता है. इससे शरीर में बैड कोलेस्ट्रॉल कंट्रोल रहता है और हार्ट को नुकसान नहीं होता है. इस तकनीक को पहले इंसानी लिवर कोशिकाओं और फिर ऐसे चूहों पर टेस्ट किया गया, जिनमें मानव PCSK9 जीन था. इसके बाद बंदरों पर परीक्षण किया गया. परिणामों में पाया गया कि एक बार की डोज से चूहों में 98% तक PCSK9 की गतिविधि बंद हो गई और LDL कोलेस्ट्रॉल में भारी गिरावट आई. यह असर एक साल से भी अधिक समय तक रहा.

रिसर्च में यह भी देखा गया कि यह एपिजेनेटिक परिवर्तन स्थायी नहीं हैं. जरूरत पड़ने पर इन्हें वापस भी बदला जा सकता है. लिवर के पुनर्जनन के बाद भी जीन साइलेंसिंग प्रभाव बरकरार रहा. साथ ही लिवर पर कोई गंभीर साइड इफेक्ट नहीं देखा गया और केवल हल्के एंजाइम बदलाव पाए गए, जो कुछ ही दिनों में सामान्य हो गए. इस तकनीक के जानवरों में मिले परिणाम उत्साहजनक हैं, लेकिन इसे इंसानों पर लागू करने से पहले और रिसर्च की जरूरत है. वैज्ञानिकों ने माना कि कुछ बंदरों में प्रतिक्रिया थोड़ी कमजोर रही, जो शरीर द्वारा दवा को अवशोषित करने की क्षमता में अंतर के कारण हो सकता है. इसके साथ ही ऑफ-टार्गेट इफेक्ट्स और लॉन्ग टर्म असर को लेकर सावधानी बरतनी जरूरी है.

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