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प्रयागराज महाकुंभ जाना है तो अपना लें ये तरीका, नहीं फंसेंगे

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अगर आप भी प्रयागराज महाकुंभ जाना चाहते हैं तो सबसे पहले प्रयागराज की स्थिति को समझ लीजिए. प्रयागराज या इलाहाबाद की सरहद गंगा और जमुना से बंधी हुई है. एक छोर से यमुना या जमुनाजी तो दूसरे छोर पर गंगाजी शहर का सीमांकन करती है. मतलब ये है कि गंगा का एक लंबा किनारा शहर को छूता हुआ चलता है. मेले की मुख्य जमीन गंगा का डूब क्षेत्र और कैंटोंमेंट की आरक्षित जमीन है. बाढ़ का सीजन छोड़़ दिया जाय तो कई वर्ग किलोमीटर का ये हिस्सा हमेशा खाली रहता है. अकबर या कहें जोधाबाई के किले के पास दोनो नदियां अदृस्य सस्वती के साथ त्रिवेणी बनाती है. हिंदू श्रद्धालु मानते हैं कि यहीं डुबकी लगाने से मोक्ष मिल जाता है.

खैर, हर आदमी यहां डुबकी लगा ही नहीं सकता, क्योंकि संगम नोज पर एक समय में सीमत संख्या में ही लोग खड़े हो सकते हैं. अखाड़ों के अमृत स्नान के दौरान सबने ये देख भी लिया होगा. लेकिन माघ के महीने में गंगा में भी नहाने से संगम स्नान से कम पुण्य नहीं मिलता. लिहाजा करोड़ों श्रद्धालु मीलो फैले गंगा घाटों पर नहा कर पुण्य कमा लेते हैं. नहाने के बाद बड़ी सहजता से उन्हें मेला घूमने का भी आनंद मिल जाता है.

इस बार 144 साल बाद बने योग का जो प्रचार हुआ कि बहुत से धर्मभीरु लोगों को चिंता हो आई कि इस बार नहीं नहाया तो फिर दूसरी बार ये ‘संयोग’ ये मौका मिलने से रहा. इस लिहाज से दूर दूर से लोग अपनी अपनी चौपहिया गाड़ियां लेकर त्रिवेणी की ओर निकल पड़ रहे हैं. यही सारी परेशानी का सबब है. सारी गाड़ियां न तो मेले क्षेत्र में जा सकती है और न ही इतनी पार्किंग बनाई जा सकी हैं जहां ये सारी गाड़ियां खड़ी हो सके. पार्किंग बनाने के लिए खेतों से खड़ी फसल को नष्ट करना पड़ता है. इसके लिए सरकार को मुआवजा देना होता है. फिर भी बहुत सारी पार्किंग बनाई गई हैं.

पार्किंग तक पहुंचने में देर होने के कारण सड़कों पर जाम की स्थिति बन जाती है. कुंभ में पूरे मंत्रिमंडल के साथ डुबकी लगा कर लौटे मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री ने तो अपने प्रदेश के लोगों से अपील भी कर दी है कि वे सड़क मार्ग से कुंभ के लिए न जाए. कहा जा सकता है एमपी के सीएम ने बिल्कुल ठीक कहा है.

अगर मेले में जाना ही चाहते हैं रेलगाड़ियों से जाने की जरुरत है. रेलगाड़ी आखिरकार किसी न किसी स्टेशन तक तो जाएगी ही और ज्यादातर मेले से 10-15 किलोमीटर के रिडियस तक तो पहुंच ही जा रही है. चाहे किसी भी ओर से आ रही हो. रेलवे स्टेशन से मेले के बाहरी सरहद तक जाने वाले ऑटो, इलेक्ट्रिक रिक्शा वगैरह मिल जाते हैं. हो सकता है इसमें थोड़ी मशक्कत करनी लेकिन यही सही तरीका है.

मेल की सीमा तक पहुंच जाने के बाद असली मशक्कत शुरु होती है. आप संगम तक पहुंच पाते हैं या फिर गंगा में नहाना पड़ता है ये तो उस दिन की भीड़ और आपके सौभाग्य पर निर्भर करता है लेकिन आपको मेले की सीमा से कम से कम 8 से 10 किलोमीटर पैदल चलना ही होगा. पैदल की दूरी भी भीड़ पर ही निर्भर करती है. हां, ये जरुर है कि मेला देखने का असली आनंद तो पैदल ही मिलेगा.

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