नोएडा : बिसरख में नहीं मनाते दशहरा, पुतला दहन से होने लगते हैं हादसे
नोएडा, बिसरख गांव के लोगों का कहना है। इस गांव का नाम लंकापति रावण के पिता विश्रवा के नाम पर रखा गया था। मान्यता है कि यहीं रावण, कुंभकर्ण, विभीषण और शूर्पणखा ने जन्म लिया।
इनसे पहले कुबेर भी यहां जन्मे, जिन्होंने सोने की लंका बनाई। तब, रावण अपने परिवार के साथ वहां चला गया। रावण के जन्मस्थान होने की वजह से यह गांव बिसरख धाम के नाम से प्रसिद्ध हुआ। दशहरे के बाद अपने आप ही लोगों का मिलना-जुलना बढ़ जाएगा। ये कोई नई बात नहीं है। हर साल ऐसा ही माहौल रहता है। गांव के लोग बाहर भी मेला या रामलीला देखने नहीं जाते। जिस दिन रावण दहन होता है, गांव में शोक जैसा माहौल रहता है।
हमारे यह सवाल पूछने पर कि ऐसा क्यों? जवाब मिलता है- यह रावण का गांव है। उनके पिता विश्रवा यहीं रहते थे। गांव में उनका मंदिर है।
यह जानने के बाद हम उस मंदिर की ओर चल पड़े। गांव में ज्यादा घनी आबादी नहीं है। लोग अपना काम करते दिखे। गांव में थोड़ा अंदर चलते ही दूर से ही मंदिर दिखा दिया। मंदिर के पुजारी और महंत ने रावण से जुड़ी कुछ जानकारियां बताईं।
मंदिर के बाहर 10 सिर वाला रावण और शिवलिंग पर सिर काटकर चढ़ाते हुए दृश्य अंकित हैं। मंदिर के अंदर शिवलिंग है, जिसको हजारों साल पुराना बताया जाता है। मंदिर के पंडित विनय भारद्वाज बताते हैं- यह अष्टभुजा धारी शिवलिंग रावण के बाबा यानी पुलस्त्य ऋषि ने स्थापित किया था।
यही शिवलिंग ही रावण की जन्मभूमि का प्रत्यक्ष प्रमाण है। शिवलिंग की खास बात यह है कि वह जिस पत्थर का है, वो आज कहीं नहीं मिलेगा। इस गांव में रावण के पिता ने राक्षसी राजकुमारी कैकसी से शादी की। यहीं रावण-कुंभकर्ण, विभीषण और शूर्पणखा का जन्म हुआ। पंडित विनय बताते हैं- सन, शताब्दी तो चंद्रगुप्त विक्रमादित्य ने शुरू किया था। यह कलयुग की गणना है। इससे पहले माया कैलंडर होता था, जिसे आज तक कोई पढ़ नहीं पाया। इसलिए असली समय तो बता पाना मुश्किल है। अगर इस मंदिर को देखा जाए, तो पता चलता है कि रावण ने 28 हजार साल तक राज किया। उससे पहले कुबेर ने राज किया। आप अंदाजा लगाइए कि रावण यहां पैदा हुए, कुबेर यहां पैदा हुए, तो यह मंदिर कितने साल पुराना हो सकता है।
पंडित ने बताया कि यहां के लोग भगवान राम की पूजा करते हैं और उनके आदर्शों को मानते हैं। लेकिन, रावण को भी गलत नहीं मानते। उसे भी विद्वान पंडित मानते हैं। यही वजह है, गांव में रावण के पुतले का दहन नहीं किया जाता।