प्रयागराज : 95 करोड़ रुपये की लागत से बनी गंगा पथ सात माह में बह गई
महाकुंभ के समय सबसे चर्चित रोड जिन रास्तों से होकर आस्थावान लोग अमृत स्नान कर अपने घर को वापस गए वह गंगा पथ बाढ़ के पानी में बह गया। करीब 95 करोड़ रुपये की लागत बनी रिवर फ्रंट रोड को खराब होने महज 7 माह का ही समय लगा।
गंगा नदी की बाढ़ में गंगा रिवर फ्रंट रोड बह जाने से चर्चा में है। सड़क पूरी तरह जर्जर और क्षतिग्रस्त हो चुकी है। फाफामऊ से सीधे संगम तक की यात्रा को सुगम बनाती थी।
करीब 15 किलोमीटर लंबी यह इंटरलॉकिंग सड़क प्रयागराज के धार्मिक, सांस्कृतिक और पर्यटन महत्व को ध्यान में रखकर बनाई गई थी। इसके किनारे आरसीसी से लेवल कर दीवार बनाई गई थी।
सड़क न बहे इसके लिए बकायदा सड़क पटरी पर बड़े बड़े पत्थर को स्टील वायर के जाल से बांधकर रखा गया, लेकिन गंगा की बाढ़ ने सड़क के साथ पत्थर के जाल को भी बहा दिया है। स्थानीय लोगों के मुताबिक गंगा के बढ़े जलस्तर और तेज बहाव ने इस निर्माण की गुणवत्ता और मजबूती पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। नतीजा यह है कि बाढ़ में इसकी नींव हिल गई।
गंगा का पानी जैसे ही सड़क पर चढ़ा, जगह-जगह इंटरलॉकिंग ईंटें उखड़ गईं, किनारों की दीवारें गिर गईं और कुछ हिस्सों में तो पूरी सड़क ही बह गई। खास बात यह है कि इस परियोजना का उद्घाटन से पहले बड़े दावे और प्रचार के साथ हुआ था। अफसरों व नेताओं ने इसे प्रयागराज की नई पहचान बताया गया था।
स्थानीय लोगों का मानना है कि यह पूरी तरह निर्माण की गुणवत्ता में कमी का नतीजा है। एक तरफ गंगा के किनारे करोड़ों रुपये खर्च करके पर्यटन को बढ़ावा देने की बात की जाती है, वहीं दूसरी तरफ पहली ही चुनौती में इस परियोजना की पोल खुल जाती है।
अब सवाल यह उठ रहे हैं कि क्या करोड़ों रुपये खर्च करके बनाई गई सड़क को इस तरह बह जाना ‘प्राकृतिक आपदा’ का मामला है या फिर इसके पीछे पीडब्ल्यूडी, नगर निगम व पीडीए जैसे बड़े विभागों मानक की अनदेखी कर निर्माण में लापरवाही, भ्रष्टाचार और तकनीकी खामियों को नज़र अंदाज किया गया।
मामले मे दैनिक भास्कर ने लोक निर्माण विभाग (PWD) और परियोजना से जुड़े अधिकारियों से बात की कोशिश की, लेकिन अफसर जवाबदेही के सवाल पर हमारे कैमरे मे बोलने को तैयार नहीं हुए।