काशी : मणिकर्णिका घाट पर लाशों की लाइन, छत पर साथ जल रहीं चिताएं
काशी का महा श्मशान मणिकर्णिका घाट गंगा में डूब गया है। घाट से करीब 15 फीट ऊपर छत पर दाह संस्कार किया जा रहा है। यहां अंतिम संस्कार के लिए लाशों की लाइन लग रही है। 5 से 6 घंटे इंतजार करना पड़ रहा है।
बाढ़ और बारिश के कारण लकडियां गिली हैं। इनको जलने में 5 घंटे लग रहे हैं। लोग कफन से लिपटी लाशों के बीच बैठकर अपनी बारी का इंतजार करते दिखे। आलम यह है कि एक साथ 8-10 लाशें जलाई जा रही हैं।
यही स्थिति हरिश्चंद्र घाट का है। यहां 3 फीट चौड़ी गली में घरों के बगल में शवदाह हो रहा है। काशी में 84 घाटों तक गंगा का पानी पहुंच चुका है। 10 हजार दुकानों को शिफ्ट करना पड़ा है। जब से गंगा का जलस्तर बढ़ा है, तब से सभी दुकानें बंद हो गई है। डेली कमाने वाले दुकानदारों के चेहरे पर मायूसी है। उनका कहना है कि जिनके राशन कार्ड बने हैं, उनको तो राशन मिल जा रहा है, लेकिन जिनके पास कार्ड नहीं है, उन्हें काफी समस्या हो रही है। कुछ ऐसी भी दुकानें हैं, जो घाट की गलियों में अपना रोजगार चला रहे हैं।
मणिकर्णिका घाट पर पहुंची, तो उस समय एक साथ 4 अर्थियां लाई गईं। एक गमगीन परिवार ने बताया- गाजीपुर से आए हैं। दादा की अर्थी है। उनकी इच्छा थी कि काशी में ही दाह संस्कार हो।
लेकिन, यहां पैर रखने तक की जगह नहीं दिख रही। अभी तो घाट तक पहुंचने में मशक्कत करनी पड़ रही है। कुछ लोग दाह संस्कार वाली जगह से नीचे उतरते दिखे। पूछने पर बोले-अभी दाह संस्कार हुआ नहीं है। श्रद्धांजलि देकर लौट रहे हैं। हमारे परिवार में मिट्टी हुई थी।
इसके बाद टीम उस जगह पर पहुंची, जहां चिता जलाई जा रही थी। यहां सिर्फ इतनी जगह दिखी कि एक बार में 10 लाशें ही जल सकें। इनके बीच ही अर्थियां रखी हुई हैं। हालत यह है कि 2 मिनट में जिंदा आदमी का शरीर तपने लगता है।
हरिश्चंद्र घाट पर आए रुद्र प्रताप सिंह ने बताया- हम 11 बजे घाट पहुंचे थे, अब 2 बज गया है। लेकिन, अभी हमारी बारी नहीं आई है। 3 फीट चौड़ी गली है। लकड़ी लाने में दिक्कत हो रही है। जो हमारे साथ परिजन आए हैं।
उठने बैठने में भी समस्या हो रही है। कुछ लोग तो बाहर अपने नंबर का इंतजार भी कर रहे हैं। बाढ़ की वजह से पानी बहुत ऊपर आ गया है। घाट जाने वाले सभी रास्तों पर पानी लगा है।
हरिश्चंद्र घाट पर गली के अंदर एक खाली स्थान पर अंतिम संस्कार हो रहा है। एक साथ 4-5 शव को जलाया जा रहा है। यहां आने वाले मृतकों के परिजन 3 फीट चौड़ी गली से होते हुए घाट के किनारे पहुंच रहे हैं। घाट तक जाने के लिए बस एक रास्ता बचा हुआ है, जहां गंगा का पानी नहीं पहुंचा है।
डोम राजा परिवार के अभिषेक चौधरी ने बताया- बाढ़ आने की वजह से घाट पर बहुत बुरी स्थिति है। जहां 20 से 25 शव जलाए जाते थे, वहां अब 4-5 जल रहे हैं। लोगों को तीन से चार घंटे इंतजार करने पड़ रहे हैं। जगह कम होने के कारण अंतिम संस्कार की जो रस्म होती है, वह भी पूरी नहीं हो पा रही है। वाराणसी के एक घाट पर 80 से 100 दुकान लगती हैं, उसमें कुछ फूलमाला बेचने वाले और कुछ चाय नाश्ता की दुकान चलाते हैं। हालांकि इन दुकानों को नगर निगम द्वारा हटाया जाता है, लेकिन गंगा किनारे इन दुकानदारों की रोजी-रोटी प्रतिदिन इन्हीं दुकानों से चलती है।