कृषि- किसान

रातों रात मालामाल बना देगी लीची खेती 

ऐसे में कृषि के क्षेत्र में 25 सालों का अनुभव रखने वाले खुशहाली कृषि संस्थान रायबरेली के पूर्व प्रबंधक अनूप शंकर मिश्रा ने को बताया कि लीची उपोष्ण कटिबंधीय जलवायु में पैदा होने वाला एक फल है. यह अपने अद्भुत सुगंध और पोषक तत्वों से भरपूर गुणों के कारण लोगों के बीच अत्यधिक लोकप्रिय है. इसके पौधों में फूल आने और फल बनने के लिए उपयुक्त जलवायु, तापमान, आर्द्रता प्रकाश के साथ ही उच्च गुणवत्ता वाली मिट्टी बेहद जरूरी होती है.

इसीलिए लीची की खेती करने वाले किसान इन जरूरी बातों का विशेष ध्यान रखें. उन्होंने बताया कि लीची की खेती भारत के उत्तर प्रदेश बिहार, उत्तराखंड, पश्चिम बंगाल और उत्तर पूर्वी राज्यों में बड़े स्तर पर की जाती है. क्योंकि इसके लिए यहां की जलवायु अनुकूल मानी जाती है.

लीची की खेती के दौरान साल में दो बार ज्यादा देखरेख की जरूरत पड़ती है. पहले जनवरी-फरवरी के बीच लीची के पेड़ पर फूल एवं फल आते हैं. दूसरा अप्रैल मई के बीच जब फल पककर तुड़ाई के लिए तैयार हो जाते हैं. अनूप शंकर मिश्रा बताते हैं कि लीची की खेती के लिए इन बातों का विशेष ध्यान रखना चाहिए.
मिट्टी कि बागवानी के लिए खेत की मिट्टी का pH मान 5.5 से 7.7 के बीच का होना चाहिए. बलुई दोमट मिट्टी होने के साथ खेत में जल निकासी कि भी उचित व्यवस्था होनी चाहिए.
लीची के पौधों पर फूल आने से पहले पौधों को नाइट्रोजन,फास्फोरस एवं फल तुड़ाई के बाद पोटाश का छिड़काव करना चाहिए. पौधों में फूल आने से 2 महीने पहले से लेकर पुष्पन के दौरान सिंचाई नहीं करनी चाहिए. यदि मौसम शुष्क है, तो हल्की सिंचाई की जा सकती है, जिससे बाग में नमी बनी रहे.
लीची की बागवानी लगाते समय पौधों की रोपाई के लिए 10 × 10 मीटर की दूरी पर 1× 1× 1 आकार के गड्ढे की खुदाई करनी चाहिए. रोपाई के दौरान गड्ढों में गोबर की खाद, नीम की खली, सिंगल सुपर फास्फेट का उपयोग करने से पौधा हरा भरा बना रहता है.

Umh News india

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *