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संभल दंगे की फाइल फिर खुलेगी, मुरादाबाद कमिश्नर ने मांगे रिकॉर्ड

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संभल में 46 साल पहले 1978 में हुए दंगों की फाइलें फिर से खुलेंगी। मुरादाबाद के कमिश्नर आन्जनेय सिंह ने अधिकारियों से संभल दंगे के रिकॉर्ड तलब किए हैं। हालांकि कमिश्नर आन्जनेय ने दैनिक भास्कर से कहा कि ये रूटीन प्रक्रिया है, उन्होंने मंडल के सभी पुराने केसों की मॉनिटरिंग की है।

कमिश्नर आन्जनेय सिंह का कहना है कि मंडलीय समीक्षा के दौरान मुरादाबाद मंडल के सभी पुराने मामलों की समीक्षा की गई है। इसी सिलसिले में सभी पुराने मामलों के रिकॉर्ड देखे जा रहे हैं। हालांकि इस एक्शन को CM योगी के बयान से जोड़कर देखा जा रहा है।

संभल में दंगे के बाद यहां हिंदू हो गए अल्पसंख्यक संभल में 29 मार्च 1978 में दंगा हुआ था। जिसमें करीब 200 हिंदुओं की मौत हो गई थी। हालांकि रिकाॅर्ड पर यह संख्या 184 के करीब है। इस दंगे के बाद संभल के दीपा सराय इलाके से हिंदू परिवार पलायन कर गए थे।

इसके बाद संभल की आबादी का अनुपात पूरी तरह से गड़बड़ा गया था। आजादी के समय यहां आधे से अधिक हिंदू आबादी थी, जो अब संभल शहर में बमुश्किल 15 फीसदी रह गई है। इस लिहाज से हिंदू यहां अल्पसंख्यक हो गए हैं।

CM ने कहा था संभल में 209 हिंदुओं का नरसंहार हुआ CM योगी ने सोमवार को विधानसभा में कहा कि संभल में 1947 के बाद से अभी तक 209 हिंदुओं की हत्या दंगों में हुई है। संभल में हुए हिंदुओं के नरसंहार पर सभी ने चुप्पी साधे रखी। 29 मार्च 1978 के दंगे में आगजनी की घटनाएं हुईं।

इसमें कई हिंदू मारे गए। 40 रस्तोगी परिवार अपने घरों को यूं ही छोड़कर पलायन कर गए। पलायन के निशान आज भी संभल में मौजूद हैं। मंदिर में कोई पूजा करने वाला नहीं बचा। घटना के 46 साल बाद भी आज तक किसी को सजा नहीं मिली। बहरहाल स्थानीय प्रशासन और लोगों की सक्रियता से 46 साल बाद मंदिर के ताले खुले हैं।

CM योगी के बयान के बाद मुरादाबाद और संभल में ब्यूरोक्रेसी हरकत में आ गई है। संभल के अधिकारियों ने दंगों से जुड़ी पुरानी फाइलें टटोलनी शुरू कर दी हैं। वहीं मुरादाबाद के कमिश्नर आन्जनेय सिंह ने भी संभल दंगे के रिकॉर्ड तलब कर लिए हैं।

अधिकारी ये पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं कि करीब 200 लोगों की हत्या दंगे में होने के बाद भी किसी को भी सजा क्यों नहीं मिली? चूक किस स्तर पर हुई ? यह पता लगाने की कोशिश की जा रही है। पुलिस सूत्रों का कहना है कि 46 साल पहले संभल दंगों के मामले में कुल 169 एफआईआर दर्ज की गई थीं। इसमें ने तीन FIR पुलिस की ओर से दर्ज की गई थीं।

1980 के मुरादाबाद दंगे की तरह 1978 के संभल दंगे की जड़ में भी मुस्लिम लीग थी। दरअसल मुस्लिम लीग के नेता मंजर शफी ने 1977 का चुनाव लड़ा था। लेकिन वह चुनाव हार गया। इसके बाद से वो अपनी राजनीति बचाने के लिए संभल को हिंसा में झोंकने की साजिशें रच रहा था।

बताया जाता है कि 29 मार्च 1978 को मंजर शफी किसी काम के लिए एसडीएम संभल के पास गया था। एसडीएम संभल ने उसे तरजीह नहीं दी तो वो हंगामा करता हुआ निकला और बाजार बंद कराने लगा। पुलिस ने उसकी इस हरकत का विरोध किया। जबरन दुकान बंद कराने की कोशिश कर रहे मंजर शफी का हिंदू दुकानदारों ने भी विरोध शुरू कर दिया।

इसके चलते हंगामा होने लगा। थोड़ी देर में मंजर शफी के समर्थकों की भीड़ जुटने लगी। पुलिस ने बल प्रयोग किया तो उसके समर्थक भाग निकले। उन्होंने मंजर शफी की मौत की अफवाह फैला दी। जिसके बाद दीपासराय में मुस्लिम आबादी के बीच रह रहे हिंदुओं का कत्ल-ए-आम शुरू हो गया।

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