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यूपी : शिक्षकों की नौकरी खतरे में, जब भर्ती हुए तब TET नहीं, अब पास करना अनिवार्य

1992 में प्राइमरी स्कूल के शिक्षक अब्दुल मजीद की मौत हो गई। उनके बेटे अब्दुल राशिद को मृतक आश्रित पर नौकरी मिली। 20 साल के अब्दुल 12वीं पास थे। उस वक्त शिक्षक बनने के लिए 12वीं पास ही न्यूनतम अर्हता थी। अब सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया है कि सभी सरकारी शिक्षकों को 2 साल में टीचर एलिजिबिलिटी टेस्ट (TET) पास करना होगा। अगर 2 साल में पास नहीं कर पाते, तो नौकरी से बाहर कर दिया जाएगा। 53 साल के अब्दुल राशिद ने ग्रेजुएशन भी नहीं किया है। ऐसे में वह दुविधा में हैं कि क्या किया जाए?

अब्दुल राशिद की ही तरह पूरे यूपी में हजारों शिक्षक हैं, जो उस वक्त भर्ती हुए जब भर्ती में न्यूनतम अर्हता 12वीं पास थी। बाद में ग्रेजुएशन हुई। विशिष्ट बीटीसी हुआ। 2011 में तय हुआ कि अब TET पास करना अनिवार्य होगा। अब सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया है कि जो पहले से नौकरी कर रहे, उन्हें भी अगले दो साल में TET पास करना होगा। वरना नौकरी से बाहर जाएं।

सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद पूरे देश में करीब 10 लाख टीचर प्रभावित होंगे। अकेले यूपी में करीब 2 लाख शिक्षकों पर असर पड़ेगा। कोर्ट ने अपने इस निर्देश में कहा है कि माइनॉरिटी इंस्टीट्यूशंस पर यह फैसला लागू होगा या नहीं, इसका फैसला बड़ी बेंच करेगी। अब सवाल है, यूपी में कैसे लोग प्रभावित होंगे। इसे लेकर हमने दो लोगों से बात की।

मैं 12वीं पास हूं, मुझे 5 साल का वक्त चाहिए अमेठी जिले के कंपोजिट विद्यालय वारसाबाद में 53 साल के अब्दुल राशिद सहायक टीचर के पद पर तैनात हैं। राशिद अमेठी जिला शिक्षक संघ के अध्यक्ष भी हैं। वह कहते हैं- 1992 में मेरे पिता अब्दुल मजीद की 51 साल की उम्र में मौत हो गई। उस वक्त मेरी उम्र 20 साल थी और मैं 12वीं पास था। मृतक आश्रित के रूप में मुझे नौकरी मिल गई। उस वक्त 12वीं पास ही प्राइमरी टीचर की नौकरी के लिए न्यूनतम अर्हता थी। 1995 में जो भर्ती हुई, उसमें भी 12वीं पास लोगों को नौकरी मिली। इसके बाद भर्ती में ग्रेजुएशन की डिग्री मांगी जाने लगी।

सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लेकर राशिद कहते हैं- शिक्षकों का पक्ष केंद्र के वकील ने कोर्ट में नहीं रखा। शिक्षकों की तरफ से कोई बात करने वाला ही नहीं था। कोर्ट के सामने जो कागज रखा गया, उसके हिसाब से फैसला हो गया। जबकि, यह फैसला बहुत अव्यावहारिक है।

2017 में केंद्र ने जो संशोधन किया था, वह प्रशिक्षण के लिए था। कहा गया कि जो अनट्रेंड हैं, वो 31 मार्च, 2019 तक ट्रेंड हो जाएं। इसकी कॉपी राज्य सरकारों को भी भेजी गई। लेकिन, राज्य सरकारों ने इसे हल्के में लिया और किसी एजुकेशन अथॉरिटी को दिया ही नहीं। फिर कैसे किसी को पता चलता?

अब्दुल कहते हैं- TET पास करना कठिन नहीं है, लेकिन हमें ग्रेजुएशन का भी मौका दिया जाना चाहिए। क्योंकि, उस वक्त 12वीं के आधार पर ही नौकरी मिली थी। उसके बाद हम लगातार पढ़ाते रहे। टीचर जैसे-जैसे पुराना होता है, उसकी एक विषय में दक्षता बढ़ती चली जाती है। लेकिन, बाकी विषयों में वह पिछड़ जाता है। जिसने 30 साल से प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी छोड़ दी हो, उसके लिए फिर से तैयारी करना और परीक्षा देना आसान नहीं होगा।

सीतापुर में सहायक अध्यापक पद पर तैनात संदीप यादव से भी हमने कोर्ट के फैसले पर बात की। वह कहते हैं- कोर्ट के बहुत सारे जजमेंट ऐसे होते हैं, जब कहा जाता है कि खेल का नियम खेल के बीच में नहीं बदला जा सकता। लेकिन, यहां खेल खत्म होने के बाद नियम बदलने की बात हो रही है। मैं 2004 विशिष्ट बीटीसी बैच का हूं। 2007 में मैं सारी अर्हताओं को पूरा करते हुए सहायक अध्यापक बना। अब अगर 18 साल बाद किसी परीक्षा को पास करने के लिए कहा जाएगा, तो गलत होगा। क्योंकि, हम सबकी ही क्षमताओं पर असर पड़ा। सिलेबस बदल गया। ऐसी परिस्थिति में हमारे लिए मुकाबला करना आसान नहीं होगा।

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