फतेहपुर : खनन माफिया और पत्रकारों के बीच उलझता प्रशासन
फतेहपुर (मनीष तिवारी), बात अटपटी है किन्तु सरलहै भाइयो । शब्दों से जाने की खनन करने वाले तो नोट कमाने ही निकले है व्यापार है । कानून नियम और कायदे से साथ देगा तो मिलेगा क्या दोनो ने मिलकर भ्र्ष्टाचार को जन्म दिया। परन्तु ये पत्रकार मंडली कब ईमान बेचकर ईमानदार बनने का स्वांग रच डाला । किसी को पता चला नही चला ।
कुछ ने खबर खिलाफ छापी । किसी ने सहयोगी बन कर छापी । दोनो ने छापी बड़े पत्रकार ने खिलाफ छाप बंद कर दिया। उसे निश्चित मात्रा में निश्चित समय पर नोट मिले क्या ईमानदार हो गया. । अब बारी है छोटे की उसके पास था जूनून और कुछ बिना भाव वाली ईमानदारी उसने भी छापी पर सुनने वाला भी घाघ निकला । पहले छापनेवाले का साथ पाकर वो बना माफिया । लेकिन औकात तो पता चल गयी छोटे और बड़े की । मौका दिया आपने उसने रख दिया जूते की नोक पर। जो जितना वजन उतनी बड़ी नोक । हल्ला हुआ अरे खनन माफिया ने ये किया वो किया पत्रकार को ही घसीट लिया पीट दिया।
अगर आप सही होते तो उसकी मजाल किसी पत्रकार को आँखे दिखाते मारते एफ आई आर लिखाते । बड़े देखते रहे छोटे रोते रहे । ये चोर खनन गैंग बिकता सरकारी महकमा को किसने शह दिया । पहले आप ही बताओ बड़ा कौन है छोटा कौन है
फिर आप ही एक दूसरे का खंडन चोरो दलालो और फालतू लोगो का महिमा मंडन करते है ।एक ईमानदार लिखता है तो एक चोर कौन सच्चा कौन झूठा ये भी तय करो। आपसी तू तू मै मै करके एक मजबूत स्तम्भ की नीव खोद कर महान बनने का नाटक छोड़ो
जिन ईमानदारों को मौका नही मिला उनको भी लेने दो आप को तो मिल ही रहा है फिर क्यो पेट खराब हो रहा है
पत्रकारिता से पेट भरना मतलब पत्रकारिता के आदर्शो का गला घोटना और आदर्श पत्रकारों का अपमान करना ही तोहै
इनमे से कुछ शेष हो तो जरूर कमेंट करना लेख मे त्रुटि मानी जाएगी, चिंता जनक पत्रकारिता को सचेत करने वाली कलम से
लेख का उद्देश्य किसी पत्रकार या पत्रकारिता की गरिमा की किसी प्रकार से आघात पहुचाना नही बल्कि सचेत करना है
ये लेखक के स्वयं के विचार है।