मूंग की खेती से किसान बन सकते हैं लखपति
श्री मुरली मनोहर टाउन स्नातकोत्तर महाविद्यालय बलिया के मृदा विज्ञान और कृषि रसायन विभाग के एचओडी प्रो. अशोक कुमार सिंह ने कहा कि फिलहाल में मूंग की खेती किसानों के लिए बेहतर है.
इस खेती में सिंचाई का साधन होना चाहिए. मूंग की खेती में ज्यादा उर्वरक की आवश्यकता नहीं पड़ती है.मूंग में पहली ‘नरेंद्र मूंग-01’ कृषि विश्वविद्यालय फैजाबाद से निकली हुई प्रजाति है और दूसरी ‘मालवीय जागृति’, बीएचयू से निकली हुई है.
इन दोनों का कोई जवाब नहीं है. यह फसल लगभग 65 से 70 दिन में तैयार हो जाती है.चार से साढ़े चार किलोग्राम बीज एक बीघा खेत के लिए पर्याप्त होते हैं. इसकी बुवाई करने के लिए सबसे पहले पर्याप्त नमी में जुताई कर ले.
बीज को राइजोबियम कल्चर से उपचारित करने के बाद 5 से 6 सेंटीमीटर गहराई पर इसकी बुवाई करे. तीज उपचारित करके बुवाई करने पर बंपर पैदावार होती है.
इसकी खेती में रोग न लगे इसके लिए फिनोल फास का इस्तेमाल किया जा सकता है.फास्फोरस वाले उर्वरकों का ही ज्यादा उपयोग करना चाहिए.
एक बीघा में लगभग 15 KG फास्फोरस, 10 KG पोटाश, 8 से 10 KG गंधक का प्रयोग करे. शुरू के दिनों में 5 KG नाइट्रोजन की मात्रा आवश्यक होती है. ध्यान रहे फसल पकने से 15 दिन पहले सिंचाई बंद कर दें.
अच्छे से देखभाल करने पर एक बीघे में लगभग 10 से 14 क्विंटल तक मूंग की उपज मिल सकती है. इसके अलावा इससे हरा बायोमास भी मिलता है.