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बदायूं जामा मस्जिद में नीलकंठ मंदिर का दावा

यूपी में संभल के बाद अब बदायूं की जामा मस्जिद चर्चा में है। हिंदू पक्ष ने दावा किया है कि जामा मस्जिद असल में नीलकंठ महादेव का मंदिर है। मंगलवार को जिला कोर्ट में हिंदू पक्ष ने सर्वे की मांग रखी तो मुस्लिम पक्ष ने जवाब दिया कि ये सिर्फ माहौल बिगाड़ने की कोशिश है। अगली सुनवाई 10 दिसंबर को होगी। उस दिन कोर्ट तय करेगा कि केस सुनने योग्य है या नहीं।

हिंदू पक्ष Vs मुस्लिम पक्ष

  • मुस्लिम पक्ष के वकील अनवर आलम ने कोर्ट में कहा- यह मामला सुनने योग्य नहीं है। हिंदू महासभा को इसमें वाद दायर करने का कोई अधिकार नहीं। जब यह खुद कह रहे हैं कि मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाई गई है, तो जाहिर सी बात है, वहां पर मंदिर का अस्तित्व नहीं है। इन्होंने वादी नीलकंठ महादेव को बनाया है। जबकि वादी प्रत्यक्ष व्यक्ति होता है।
  • हिंदू पक्ष की बहस नहीं हुई है। हिंदू पक्ष के वकील विवेक रेंडर ने कोर्ट के बाहर कहा- मुस्लिम पक्ष अपनी बहस कर रहा है, इसके बाद हम अपना पक्ष रखेंगे। मुस्लिम पक्ष के मंदिर के अस्तित्व को नकारने पर कहा कि अगर मंदिर का अस्तित्व नहीं है तो वो सर्वे कराने से क्यों डर रहे हैं।

2 सितंबर, 2022 को बदायूं सिविल कोर्ट में भगवान श्री नीलकंठ महादेव महाकाल (ईशान शिव मंदिर), मोहल्ला कोट/मौलवी टोला की तरफ से एक याचिका दायर हुई। इसमें जामा मस्जिद इंतजामिया कमेटी, यूपी सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड, ASI, केंद्र सरकार, यूपी सरकार, बदायूं कलेक्टर और प्रदेश के मुख्य सचिव को पार्टी बनाया गया। याचिका में दावा किया गया कि मौजूदा वक्त में बदायूं की जामा मस्जिद की जगह पर नीलकंठ महादेव का मंदिर था।

दावा किया जा रहा है कि मंदिर में यही शिवलिंग स्थापित था, जिसे मस्जिद बनाते समय हटा दिया गया। बाद में अखिल भारतीय हिंदू महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजश्री चौधरी ने इस केस को लड़ने के लिए 5 प्रतिनिधि (याचिकाकर्ता) नियुक्त किए। इनमें महासभा के प्रदेश संयोजक मुकेश पटेल, अरविंद परमान एडवोकेट, ज्ञानेंद्र प्रकाश, डॉ. अनुराग शर्मा और उमेश चंद्र शर्मा शामिल हैं।

कोर्ट ने 5 लोगों के याचिकाकर्ता बनने की एप्लिकेशन स्वीकार कर ली। अब यही पांचों लोग हिंदू पक्ष की तरफ से कोर्ट में उपस्थित हो रहे हैं। पिछले दो साल से कोर्ट में तारीख पर तारीख लग रही हैं। हिंदू और मुस्लिम दोनों पक्षों को सुना जा रहा है। माना जा रहा है, अगले 3 महीने में कोर्ट तय कर देगा कि ये केस आगे सुनने लायक है या नहीं।

1- ASI सर्वेक्षण रिपोर्ट में लिखा- राजा महिपाल ने मंदिर बनवाया, जिसे मुसलमानों ने नष्ट किया ASI ने 1875 से 1877 तक बदायूं से बिहार तक हुए सर्वेक्षण की एक रिपोर्ट तैयार की। ये सर्वे ASI के तत्कालीन डायरेक्टर जनरल ए. कनिंघम ने किया था। कलकत्ता सरकारी मुद्रण अधीक्षक कार्यालय ने ये रिपोर्ट 1880 में प्रकाशित की।

इस रिपोर्ट में लिखा है- कुतुबुद्दीन ऐबक ने बदायूं को अपना मुख्यालय बनाया। बदायूं का पहला गवर्नर शमसुद्दीन अल्तमश था, जो बाद में दिल्ली का राजा बना, लेकिन बदायूं में उसकी दिलचस्पी दिल्ली के सिंहासन पर बैठने के बाद भी बनी रही। 5 साल बाद उसने अपने बड़े बेटे रुकनुद्दीन फिरोज को बदायूं का गर्वनर बनाया।

रिपोर्ट में आगे लिखा है, ब्राह्मणों के अनुसार- बदायूं का पहला नाम बेदामऊ या बदामैया था। तब तोमर वंश के राजा महिपाल ने यहां एक बड़ा किला बनवाया, जिस पर अब शहर का एक हिस्सा खड़ा है। कई मीनारें अभी भी बनी हैं।

यह भी कहा जाता है कि महिपाल ने हरमंदर नाम का एक मंदिर बनवाया था, जिसे मुसलमानों ने नष्ट कर दिया था। इसके स्थान पर वर्तमान जामा मस्जिद बनवाई थी। लोग इस बात पर एकमत हैं कि मंदिर की सभी मूर्तियां, मस्जिद के नीचे दबी थीं।

2- 1857 के गजेटियर में लिखा- मस्जिद की निर्माण सामग्री नष्ट हुए मंदिर की लगती है ब्रिटिश काल (1857) में गजेटियर तैयार हुआ। इसमें बदायूं तहसील के इतिहास का भी जिक्र है। पेज नंबर 249 पर लिखा है- यहां सबसे पुरानी मुस्लिम इमारत शायद शम्स-उद-दीन अल्तमश की ईदगाह है, जो 1202 से 1209 ईसवी तक बदायूं का पहला गर्वनर था। इसके अवशेष पुराने शहर के पश्चिमी बाहरी इलाके से करीब 2 किलोमीटर दूरी पर हैं। इसमें 91.4 मीटर लंबी ईंट की दीवार है।

3- जिला प्रशासन ने कहा- ईशान नाम के मठाधीश ने मंदिर बनवाया, कुतुबुद्दीन के दामाद ने ध्वस्त किया बदायूं के इतिहास पर यहां के जिला सूचना एवं जनसंपर्क कार्यालय ने अनेक बार पुस्तिका भी छपवाई। इसमें पेज नंबर-12 से 14 तक लिखा है- गुप्त काल में यह नगर वेदामऊ नाम से जाना जाने लगा। उस समय लखपाल यहां का राजा था।

इसी समय में ईशान शिव नामक मठाधीश ने विशाल शिव मंदिर की स्थापना कराई, जो नीलकंठ महादेव और बाद में इशान महादेव मंदिर के नाम से जाना जाता रहा। साल 1175 में राजा अजयपाल ने इस मंदिर का जीर्णोद्धार कराया।

1202 में कुतुबुद्दीन ऐबक ने बदायूं पर अधिकार कर मुसलमान गुलामवंश राज्य की स्थापना की। बदायूं को पश्चिमी क्षेत्र के सूबेदार की राजधानी बनाया। कुतुबुद्दीन के दामाद अल्तमश बाद में बदायूं के सूबेदार बने। उन्होंने नीलकंठ महादेव के मंदिर को ध्वस्त कर जामा मस्जिद शम्सी की तामीर (स्थापना) कराई। यह आज भी मौजूद है।

बाद में अल्तमश ने ही जामा मस्जिद के नजदीक दीनी तालीम के लिए मदरसा की स्थापना कराई, जो आज भी मदरसा आलिया कादरि नाम से मौजूद है। उसने ही ईदगाह तामीर कराई, जो आज भी है।

हिंदू पक्ष के याची बोले- सुरंग, पिलर, कुआं अभी भी मौजूद हिंदू पक्ष की तरफ से याची नंबर-एक मुकेश पटेल हैं, जो अखिल भारतीय हिंदू महासभा के प्रदेश संयोजक भी हैं। मुकेश बताते हैं- ये भगवान नीलकंठ महादेव का मंदिर है। राजा महिपाल का किला है। किले में ही ये मंदिर था। दिल्ली फतह करने के बाद मोहम्मद गौरी का सेनापति कुतुबुद्दीन ऐबक दिल्ली पहुंचा। वहां कब्जा करके उसने कन्नौज पर आक्रमण किया।

कन्नौज फतह कर वह बदायूं आया। उस समय बदायूं, कन्नौज सल्तनत के अधीन थी। कुतुबुद्दीन ने राजा महिपाल को मारा और अपने दामाद को बदायूं का सूबेदार बनाया। उसने सबसे पहले भगवान नीलकंठ के मंदिर को क्षति पहुंचाई। वो पूरा मंदिर क्षतिग्रस्त नहीं कर पाया। यहां सुरंग, पिलर सहित तमाम सबूत मौजूद हैं।

पूजा-पाठ करने वाला कुआं भी मौजूद है, जहां पहले भंडारा होता था। जब कोर्ट कमिश्नर यहां सर्वे करेगा, तो स्थितियां स्पष्ट हो जाएंगी। हम चाहते हैं, भगवान नीलकंठ महादेव फिर से आजाद हैं और पूजा-पाठ के लिए मंदिर को हिंदू समाज को सौंपा जाए। हमारे पास सारे रिकॉर्ड मौजूद हैं, जो इस जगह को मंदिर बताते हैं।

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