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पति ने जबरन अप्राकृतिक सेक्स किया, पत्नी की मौत; हाईकोर्ट ने क्यों कहा अपराध नहीं

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पत्नी के साथ पति जबरदस्ती अननेचुरल सेक्स करे, इसमें चाहे पत्नी की मौत भी क्यों न हो जाए, पति को कोई सजा नहीं होगी। ऐसा हमारे कानून में दर्ज है और छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने सोमवार को एक फैसले में इस पर एक बार फिर मुहर लगा दी।

11 दिसंबर 2017 को बिलासपुर के सरकारी महारानी अस्पताल में एक अधेड़ महिला को भर्ती कराया गया। महिला के प्राइवेट पार्ट्स पर गंभीर चोटें थीं। इस वजह से ब्लीडिंग हो रही थी। संदिग्ध मामला देखते हुए बोधघाट थाने की पुलिस बुलाई गई।

महिला ने कार्यकारी मजिस्ट्रेट को बताया कि उसके 40 वर्षीय पति गोरखनाथ शर्मा ने उसकी मर्जी के बिना जबरन अप्राकृतिक यौन संबंध बनाए, जिससे वे बीमार हो गईं। पहले बच्चे के जन्म के बाद से उसे बवासीर की समस्या थी। इस वजह से उसे प्राइवेट पार्ट से ब्लीडिंग और पेट में दर्द होता था। इसके बावजूद पति अप्राकृतिक संबंध बनाता था।

11 दिसंबर को बयान देने के कुछ समय बाद ही महिला की मौत हो गई। महिला के बयान पर पुलिस ने आरोपी गोरखनाथ के खिलाफ IPC की धारा 304, 376 और 377 के तहत मामला दर्ज कर गिरफ्तार कर लिया।

11 फरवरी 2019 को जगदलपुर की फास्ट ट्रैक कोर्ट ने आरोपी गोरखनाथ को 10 साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई। इसके बाद पति ने फास्ट ट्रैक कोर्ट के फैसले को बिलासपुर हाईकोर्ट में चुनौती दी। पीड़ित महिला की मौत होने पर सरकारी वकील प्रमोद श्रीवास्तव ने उसकी और से केस लड़ा।

10 फरवरी 2025 को छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के जस्टिस नरेंद्र कुमार व्यास की सिंगल बेंच ने मामले पर फैसला सुनाते हुए पति को रिहा कर दिया।

जस्टिस नरेंद्र कुमार व्यास ने फैसले में कहा, ‘अगर पत्नी की उम्र 15 साल से ज्यादा है और पति उसके साथ संबंध बना रहा है तो इसे रेप नहीं कहा जा सकता। अप्राकृतिक संबंध के लिए पत्नी की स्वीकृति जरूरी नहीं है, इसलिए आरोपी पर अपराध नहीं बनता।’

सुनवाई के दौरान बचाव पक्ष ने गैर-इरादतन हत्या को लेकर सफाई देते हुए कहा कि आरोपी पति के खिलाफ कोई पुख्ता सबूत नहीं मिला। यह पूरा केस सिर्फ महिला के बयान पर आधारित था। इस पर हाईकोर्ट ने कहा कि बिना किसी सबूत के आधार पर नहीं कहा जा सकता कि महिला को सेक्स के दौरान चोटें लगी थीं, जिस वजह से उसकी मृत्यु हो गई।

जस्टिस व्यास ने धारा 304 (गैर-इरादतन हत्या), धारा 376 (बलात्कार) और धारा 377 (अप्राकृतिक सेक्स) के तहत दोषमुक्त कर दिया। हाईकोर्ट का कहना है कि IPC की धारा 375 के सेक्शन 2 के प्रावधान के मुताबिक, पति का अपनी पत्नी के साथ यौन संबंध बनाना बलात्कार नहीं है। अगर पति ने अप्राकृतिक सेक्स भी किया है, तो IPC की धारा 377 के तहत इसे अपराध नहीं माना जा सकता। किसी महिला के साथ रेप करने पर IPC की धारा 375 और 376 के तहत मामला दर्ज किया जाता था। अप्राकृतिक यौन संबंध के लिए धारा 377 थी, लेकिन इन कानूनों में पति-पत्नी के संबंधों को अपवाद माना गया है। यानी अगर पति जबरन शारीरिक संबंध बनाता है तो ये रेप की कैटेगरी में नहीं आएगा।

1 जुलाई 2024 से IPC की जगह लागू हुई भारतीय न्याय संहिता (BNS) में भी वैवाहिक बलात्कार को अपराध नहीं माना गया है। साथ ही BNS में IPC की धारा 377 जैसा कोई प्रावधान नहीं है जो अप्राकृतिक यौन संबंध को अपराध घोषित करता हो।

सुप्रीम कोर्ट के सीनियर एडवोकेट अश्विनी दुबे के मुताबिक भारतीय संस्कृति में शादी के बंधन को पुरुष और महिला की यौन इच्छाओं को पूरा करने का आधार बताया गया है। अगर पति अपनी पत्नी से सेक्स करने या किसी भी तरह शारीरिक संबंध बनाने का आग्रह करता है, तो यह उसके अधिकारों के तहत आता है। इसके लिए पत्नी इनकार नहीं कर सकती। फिर चाहे पति किसी भी तरीके से शारीरिक संबंध बनाए।

अश्विनी दुबे मानते हैं, ‘भारतीय कानून में पति-पत्नी के बीच सेक्शुअल एक्टिविटीज को बंद कमरे के अंदर होना परिभाषित किया गया है, जिसमें सुप्रीम कोर्ट या कानून दखल नहीं दे सकता। आसान भाषा में कहें तो अगर बंद कमरे में पति और पत्नी के बीच किसी भी तरह से शारीरिक संबंध बन रहे हैं, तो यह कानून के दायरे से बाहर है। वैवाहिक जीवन में दोनों लोगों को इसकी आजादी है।’ इस पूरी डिबेड में क्रिटिक्स तर्क देते हैं कि महिला अपने पति की यौन जरूरतों को पूरा करने के लिए बाध्य है। दूसरा पक्ष यह भी है कि लचीले कानून महिलाओं की शारीरिक स्वतंत्रता (बॉडी ऑटोनॉमी) का उल्लंघन करते हैं। साथ में इस धारणा को बढ़ावा देते हैं कि एक पत्नी को अपने पति की इच्छाओं के सामने झुकना चाहिए, चाहे वह सहमति न भी दे रही हो।अश्विनी दुबे का कहना है कि हाईकोर्ट के फैसले से सोशली इम्पैक्ट पड़ना गलत है, क्योंकि जस्टिस ने कानून के तहत फैसला सुनाया है। हालांकि सुप्रीम कोर्ट में इस कानून को लेकर लड़ाई जारी है। उम्मीद है कि सुप्रीम कोर्ट इस कानून में बदलाव के आदेश दे सकता है।

महिला सशक्तीकरण के लिए काम करने वाले एक NGO आरआईटी फाउंडेशन की फाउंडर डॉ. चित्रा अवस्थी मानती हैं, ‘महिलाएं शादी में होने वाले यौन उत्पीड़न के मामलों में कई बार आवाजें उठा चुकी हैं, अब जरूरत है कि रेप से जुड़े कानूनों पर दोबारा काम किया जाए। महिला किसी की संपत्ति और खिलौना नहीं है, जिसके साथ कुछ भी किया जा सकता है।’

सुप्रीम कोर्ट की सीनियर एडवोकेट करुणा नंदी ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर कहा, ‘जस्टिस कानून से बंधे थे। नए BNS में मैरिटल रेप अपवाद के तहत, अगर पति अपनी पत्नी की सहमति के बगैर उसके शरीर के किसी भी अंग में कोई वस्तु या अपना अंग डालता है, तो इसे बलात्कार नहीं माना जाएगा। नए कानून में इसे बदला जा सकता था, लेकिन इसे वैसे ही रहने दिया गया। हमने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है ताकि इस मैरिटल रेप अपवाद को हटाया जा सके।’

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