हड़ताल है या अन्याय! एम्स-सफदरजंग में तड़प रहे मरीज, हाल देखकर नहीं रोक पाएंगे आंसू
कोलकाता में साथी डॉक्टर की रेप और हत्या के बाद डॉक्टरों का आक्रोश आसमान पर है. पूरे देश के अस्पतालों में बस एक ही आवाज आ रही है हड़ताल… डॉक्टर काम छोड़कर इंसाफ की मांग कर रहे हैं, सुरक्षा और कानून मांग रहे हैं. ये मांगें जायज भी हैं.. लेकिन अब जरा दूसरी तरफ नजर घुमाइए.. अस्पताल में अपने बीमार बच्चे को कंधों पर लटकाए बिना इलाज लौटते मां-बाप, थैले में एक बोतल पानी और चार सूखी रोटी बांधकर दर्द से कराहती बूढ़ी मां को इलाज के लिए अस्पताल के सड़क किनारे लेकर पड़ी बेटी, लंबी सांस लेते ढ़ाई महीने के बेसुध बच्चे को छाती से चिपकाए बिना इलाज मिले लौटती उस मां की आंखों में झांकिए… इस दर्द और पीड़ा का जवाब शायद ही हो..
डॉक्टरों की हड़ताल के बाद दिल्ली के सबसे बड़े अस्पतालों में शुमार एम्स और सफदरजंग का हाल भी इतना ही दर्द भरा है. Media ने जब यहां आकर देखा तो नजारा हैरान करने वाला था. मरीज दो दो दिनों से अस्पताल में पड़े हैं. ओपीडी के कमरों में ताले लटके हैं. महीनों से सर्जरी की तारीख लेकर आए मरीज भटक रहे हैं. न इलाज का पता है और न ही डॉक्टरों का. बस गार्ड जी मरीजों को कह देते हैं, अभी डॉक्टरों की हड़ताल है, फिर आना. आखिर इन बेचारों मरीजों को किस बात की सजा मिल रही है, कोई बताने वाला नहीं.
एम्स में पीडियाट्रिक इमरजेंसी की दीवार से लगी सड़क पर लेटी महिला रुखसाना दर्द से कराह रही थी. पास में बैठी बेटी सीमा बेबस और लाचार, बस मां को ढांढस बंधा रही थी कि इलाज हो जाएगा लेकिन News18 को उसने बताया कि वे 12 अगस्त के एम्स आए हैं. रुखसाना कि किडनी फेल हो गई हैं. पिछले 8 साल से एम्स में ही इलाज चल रहा है. फिलहाल डायलिसिस भी होना है और दिखाना भी है लेकिन गए तो कह दिया हड़ताल है, जाओ कहीं और दिखाओ. कल आरएमएल भी गए, वहां से भगा दिया कि एम्स में दिखा रहे हो तो वहीं दिखाओ. किराए का पैसा नहीं है, एम्स में ही सड़क पर पड़े हैं. बस यही उम्मीद है कि हड़ताल खुले तो शायद डॉक्टर देख लें.
एम्स के कार्डियो-न्यूरो टॉवर से अपने ढ़ाई महीने के बच्चे को बिना दिखाए लौटते अंकुश यादव ने बताया कि बच्चे के दिल में छेद के अलावा हार्ट की वेन मिक्स होने से साफ और खराब खून मिल रहा है. इसे बरेली से रैफर किया गया था. एम्स में आज दिखाना था, पूरा परिवार साथ आया था लेकिन नहीं दिखा पाए. परसों के लिए बोल रहे हैं, लेकिन हड़ताल खत्म नहीं हुई तो भगवान जाने कब दिखा पाएंगे. बच्चे को बहुत परेशानी हो रही है.
एम्स में अपॉइंटमेंट लेकर ग्वालियर के लक्ष्मीगंज से आए दिनेश सलूजा अपनी पत्नी सुनीता सलूजा के साथ आए थे. इनके पैर में गैंगरीन था और पैर कटना था लेकिन हड़ताल हो गई और इन्हें मना कर दिया गया. पैर में सड़न होने से दर्द से बेहाल दिनेश सलूजा ने आखिरकार ग्वालियर लौटना ही बेहतर समझा. वे बोले, अब नहीं आएंगे दिल्ली, वहीं इलाज कराएंगे. एम्स और सफदरजंग जैसे अस्पतालों से हड़ताल के चलते बिना इलाज के लौटे मरीज भले ही वापस फिर इलाज कराने यहां आएं या न आएं, लेकिन एक सवाल जरूर ये छोड़कर गए हैं कि डॉक्टरों की इंसाफ की इस लड़ाई में इन मरीजों का क्या दोष है? इन मरीजों के दर्द और परेशानी का जिम्मेदार आखिर कौन है? क्या ये हड़ताल इन मरीजों के साथ अन्याय नहीं है?