बड़ी खबर, नासा को मिले चंद्रमा पर गुफाओं के नेटवर्क के सबूत
चंद्रमा पर जाने की तैयारी में सबसे बड़ी दिक्कत वहां सूर्य से आने वाले हानिकारक विकरणों से निपटना है. इसके लिए कई तरह के प्रस्ताव हैं जिनमें से कुछ वहां मजबूत इमारतें बनाने के इरादे शामिल हैं. पर नासा के एक अंतरिक्ष यान ने चंद्रमा की ऐसी तस्वीरें हासिल की हैं जो एक बहुत ही उत्साह बढ़ाने वाले सबूत दे रही हैं. नासा के वैज्ञानिकों को चंद्रमा की सतह के नीचे लावा ट्यूब और उससे जुड़ी गुफाओं के नेटवर्क के सबूत मिले हैं. कई वैज्ञानिकों का कहना है कि ये गुफाएं वहां जाने वाले इंसानों की कई समस्याओं का एक साथ समाधान कर सकते हैं.
14 साल पुराने आंकड़ों से मिले नतीजे
नासा के एलआरओ लूनर रिकॉनिसेंस ऑर्बिटर या एलआरओ से प्राप्त आंकड़ों का इस्तेमाल करने वाले वैज्ञानिकों की एक अंतरराष्ट्रीय टीम ने चंद्रमा की सतह के नीचे गुफाओं के ये सबूत खोजे हैं. 2010 में एलआरओ के मिनी-आरएफ (मिनिएचर रेडियो-फ्रीक्वेंसी) उपकरण से जमा किए गए रडार आंकड़ों का टीम ने फिर से अध्ययन किया जिसमें टीम को एक गड्ढे के आधार से 200 फीट से अधिक दूर तक फैली एक गुफा के सबूत मिले.
कहां मिले सबूत
खास बात ये है कि यह गड्ढा मैरे ट्रैंक्विलिटैटिस इलाके में चंद्रमा पर पहले मानव लैंडिंग स्थल से 230 मील उत्तर पूर्व में मौजूद है. गुफा की पूरी सीमा का तो पता नहीं चला है, लेकिन यह मैरे के नीचे कई मील तक फैली हो सकती है, इसकी गुंजाइश बहुत अधिक है. यही इस खोज का सबसे खास बात है जो काफी उम्मीदें जगाने वाली है.
वैज्ञानिकों को दशकों से संदेह है कि चंद्रमा पर भी पृथ्वी की तरह ही सतह के नीचे गुफाएं हैं. नासा के लूनार ऑर्बिटर से मिली तस्वीरों में ऐसे गड्ढों का सुझाव दिया गया था जो गुफाओं की ओर ले जा सकते हैं. इन्हीं तस्वीरों ने नासा के अपोलो मानव लैंडिंग से पहले चंद्रमा की सतह का मैप बनवाया था.
2009 में JAXA (जापान एयरोस्पेस एक्सप्लोरेशन एजेंसी) के कागुया ऑर्बिटर द्वारा ली गई तस्वीरों से एक गड्ढे की पुष्टि हुई थी, और तब से LRO द्वारा ली गई सतह की तस्वीरों और थर्मल मापों के माध्यम से चंद्रमा पर कई गड्ढे पाए गए हैं. लेकिन किसी को यह उम्मीद नहीं थी कि यही गड्ढे आपस में एक नेटवर्क के जरिए भी जुड़े रह सकते हैं. अगर ऐसा है तो चंद्रमा पर ये बहुत सारी संभावनाओं को पैदा करने वाली खोज साबित होगी.
इस खोज से गुफाओं के नेटवर्क के उत्साह बढ़ाने वाले प्रमाण मिले हैं. मैरीलैंड के ग्रीनबेल्ट में NASA के गोडार्ड स्पेस फ़्लाइट सेंटर में स्थित LRO परियोजना वैज्ञानिक नोआ पेट्रो ने कहा, अब मिनी-RF रडार डेटा के विश्लेषण से हमें पता चलता है कि ये गुफाएं कितनी दूर तक फैली हो सकती हैं. साफ जाहिर है कि ऐसे में चंद्रमा पर हो रहे शोधकार्य और यहां तक कि भविष्य के अभियानों में भी बदलाव देखने को मिल सकता है.LRO ने खुलासा किया कि चंद्रमा के गड्ढे चंद्र सतह पर मानव गतिविधि का समर्थन कर सकते हैं पृथ्वी पर यहा पाए जाने वाले “लावा ट्यूबों” की तरह, वैज्ञानिकों को संदेह है कि चंद्र गुफाएँ तब बनीं जब पिघला हुआ लावा ठंडे लावा के क्षेत्र के नीचे बहता था, या लावा की नदी के ऊपर एक पपड़ी बनती थी. ऐसे में यहां पहुंच तक चंद्रमा के अंदर की संरचना, उसके बनने की प्रक्रिया सहित कई अहम भूगर्भीय जानकारिया मिल सकती हैं.