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निजीकरण के खिलाफ बिजली कर्मियों का जोरदार प्रदर्शन

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पूर्वांचल और दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम के निजीकरण के विरोध में बिजली कर्मचारी और अभियंता लखनऊ में जोरदार प्रदर्शन कर रहे हैं। इसमें 10 राज्यों के बिजली इंजीनियर और कर्मचारियों के संगठनों के पदाधिकारी भी शामिल हैं। पांच थानों की पुलिस बुलाई गई है। भीड़ अधिक होने के कारण सीआरपीएफ जवान लगाए गए हैं। सभी स्थिति नियंत्रण करने की कोशिश में जुटे हैं।

इससे पहले मंगलवार को नेशनल कोऑर्डिनेशन कमेटी ऑफ इलेक्ट्रिसिटी इम्प्लॉइज एंड इंजीनियर्स के उत्तरी क्षेत्र की बैठक हुई थी। इसमें फैसला लिया गया था कि अगर सरकार अब भी निजीकरण की प्रक्रिया वापस नहीं लेती है तो कर्मचारी आंदोलन करेंगे

ग्रामीण इलाकों में होता है भेदभाव

विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति के संयोजक शैलेंद्र दुबे ने बताया कि जहां निजीकरण है वह शहरी और ग्रामीण इलाकों में भेदभाव किया जा रहा है। व्यवसायिक प्रतिष्ठानों को 24 घंटे बिजली मिलती है, लेकिन गांवों को बमुश्किल 10-12 घंटे ही बिजली मिलती है। कम पैसे मिलने की वजह से ग्रामीण क्षेत्र के घरेलू और कृषि क्षेत्र को कम बिजली दी जा रही है। कृषि उपभोक्ताओं को सब्सिडी भी नहीं मिलती है। सरकार से एग्रीमेंट के समय 54 महीने में खुद का बिजली घर लगाकर पावर सप्लाई की व्यवस्था करने की बात कही थी। पर 32 सालों बाद भी कंपनी खुद का बिजली घर नहीं लगा पाई। कई सालों तक पावर कॉरपोरेशन महंगी बिजली खरीद कर उन्हें सस्ते में देती रही। अब जाकर यहां की कंपनी खुद से बिजली की व्यवस्था कर रही है। 2023-24 के आंकड़ों के अनुसार कानपुर और आगरा की कंपनियों की तुलना कर लें तो सारा खेल समझ में आ जाएगा। कानपुर की कंपनी बिजली बेच कर उपभोक्ताओं से औसतन 7.96 रुपए प्रति यूनिट वसूलती है। जबकि आगरा की टोरेंट कंपनी को यूपी कॉर्पोरेशन कंपनी 5.55 रुपए प्रति यूनिट की दर से बिजली खरीद कर 4.36 रुपए प्रति यूनिट की दर से उपलब्ध कराती है। इससे यूपी पावर कॉर्पोरेशन को हर साल 275 करोड़

सरकार को प्रति यूनिट 3 रुपए का साफ घाटा राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा ने कहा है कि यूपी पावर कॉर्पोरेशन से टोरेंट कंपनी हर साल लगभग 2300 मिलियन यूनिट 4.36 रुपए प्रति यूनिट की दर से खरीद कर 7.98 रुपए प्रति यूनिट की दर से उपभोक्ताओं को बेच रहा है। इससे भी सरकार को प्रति यूनिट 3 रुपए का साफ घाटा लग रहा है। इससे टोरेंट को हर साल लगभग 700 करोड़ रुपए का मुनाफा हो रहा है। यदि निजीकरण नहीं होता तो ये फायदा यूपी पावर कॉरपोरेशन का होता। मतलब साफ है कि अकेले आगरा के निजीकरण से हर साल यूपी पावर कॉरपोरेशन को 1000 करोड़ का नुकसान हो रहा है।

इन जिलों से आए कर्मी सरकार के फैसले को लेकर होने वाली रैली में जम्मू कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, हरियाणा, राजस्थान, पंजाब, दिल्ली, लद्दाख, चंडीगढ़ और उत्तर प्रदेश के बिजली कर्मचारी संघों के प्रतिनिधि भी शामिल हुए है। करीब 5000 लोग जुटे है।

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