UP : कचौड़ी वाला बना मुर्दों का हमदर्द, हर कोई कर रहा तारीफ
अलीगढ़: कहते हैं कि इंसानियत से बड़ा कोई धर्म नहीं होता, और अलीगढ़ के एक कचौड़ी विक्रेता ने इसे साबित कर दिखाया है. आईटीआई रोड पर ठेला लगाने वाले मुखलेश कश्यप न सिर्फ अपनी रोजी-रोटी कमाते हैं, बल्कि लावारिस और बेसहारा शवों के अंतिम संस्कार में मदद कर मानवता की मिसाल भी पेश कर रहे हैं. वह हादसों में मारे गए अज्ञात लोगों और गरीबों के लिए अपने खर्चे पर कफन का इंतजाम करते हैं, जिससे उन्हें एक अलग पहचान मिली है.
मुखलेश हादसों में मरने वाले अज्ञात एवं गरीबों के लिए कफन का इंतजाम करते हैं. इसके लिए वह अपनी आय में से हर रोज पैसा बचाते हैं. मुखलेश अलीगढ़ के थाना बन्ना देवी इलाके में सिंचाई विभाग कार्यालय के पास कचौड़ी का ठेला लगाकर परिवार का भरण-पोषण करते हैं और इसी आय से यह नेक काम भी कर रहे हैं.
लावारिसों का बन रहे सहारा
मुखलेश कश्यप उन अज्ञात शवों के लिए यह सेवा कार्य कर रहे हैं, जिनका अंतिम समय में कोई नहीं होता. वह ट्रेन, सड़क या अन्य हादसों के शिकार अज्ञात शवों के लिए कफन उपलब्ध कराते हैं और गरीब व असहाय लोगों का भी सहारा बनते हैं. जिनके पास कफन तक के लिए पैसे नहीं होते, उनके लिए मुखलेश कश्यप किसी मसीहा से कम नहीं हैं.
मुखलेश ने कोरोना काल के दौरान इस सेवा कार्य की शुरुआत की थी, जो अब तक लगातार जारी है. पिछले कई वर्षों में वह सैकड़ों शवों के लिए कफन का इंतजाम कर चुके हैं. उनके इस कार्य से उनके परिवार के लोग भी खुश हैं. इतना ही नहीं कफन के अलावा अगर किसी को अंतिम संस्कार के लिए अन्य सामान की जरूरत हो, तो उसे भी उपलब्ध कराने में मुखलेश पीछे नहीं हटते.
मुखलेश कश्यप ने बताया, “मैं पिछले कई वर्षों से कई ऐसी संस्थाओं और लोगों से जुड़ा हुआ हूं, जो मानव धर्म की सेवा करते हैं. जब कोरोना काल आया, तब मेरे मन में यह विचार आया कि मुझे मानव सेवा के लिए कुछ अलग करना चाहिए. तभी से मैं लावारिस शवों के लिए मुफ्त में कफन देने का कार्य कर रहा हूं.”
“जितने भी लावारिस शव आते हैं, उनके लिए मैं कफन देता हूं. इसके अलावा, अंतिम संस्कार के लिए कोई अन्य सामान की जरूरत पड़ती है तो वह भी मैं उपलब्ध कराता हूं. इसके लिए मैं किसी से कोई पैसा नहीं लेता.” मुखलेश ने बताया कि वह एक छोटी-सी कचौड़ी की दुकान चलाते हैं, जिससे उनके परिवार का भरण-पोषण होता है. इसी आय से कुछ पैसे बचाकर वह कफन और अन्य सामान का इंतजाम करते हैं.
मुखलेश ने बताया कि कोरोना के समय लावारिस शवों की हालत देखकर वे बेहद आहत हुए. तभी से उन्होंने यह संकल्प लिया कि कुछ ऐसा किया जाए, जिससे शवों की यह दयनीय स्थिति न रहे. बताया कि पिछले कई वर्षों से वह ये सेवा कर रहे हैं, और अपने बच्चों को भी इस नेक कार्य को आगे बढ़ाने की सीख दे रहे हैं. कहा उनका मानना है कि जब तक जीवन है और उसके बाद भी, यह नेक सेवा कभी रुकनी नहीं चाहिए. उन्होंने लोगों से भी अपील की कि ऐसे नेक कार्यों में आगे आएं और मानवता को बढ़ावा दें.