ब्रोकली की खेती मुनाफे का सौदा, मार्केट में है खूब डिमांड
ये कहानी है सहारनपुर के उस युवक की जो इन दिनों इसी सुख का आनंद ले रहा है. खेती-किसानी में उसका मन ऐसे रमता है कि लोग सरकारी नौकने पाने की चाह में खेती छोड़ते हैं, वो खेती के लिए सरकारी नौकरी छोड़े बैठा है. एक या दो सरकारी नौकरी नहीं, बल्कि पांच-पांच गवर्नमेंट जॉब छोड़ चुका है.
सहारनपुर के मयंक सिंह जब सरकारी नौकरी छोड़कर परंपरागत खेती में उतरने का फैसला किया तो सभी हैरान रह गए. मयंक सिंह परंपरागत खेती के साथ कुछ अलग खेती करना पसंद करते हैं. उन्होंने ने अपने खेत में मल्चिंग विधि से ब्रोकली की खेती शुरू की है. ब्रोकली का इस्तेमाल सूप, सलाद इत्यादि में किया जाता है.
मल्च विधि खेतों में पौधों के चारों ओर मिट्टी को ढकने की तकनीक है. मल्चिंग से मिट्टी की नमी बनी रहती है, मिट्टी का कटाव कम होता है, और खरपतवार की समस्या कम होती है. मल्चिंग में जैविक और अकार्बनिक दोनों तरह की सामग्री का इस्तेमाल किया जा सकता है.मल्चिंग से मिट्टी की उर्वरता बढ़ती है. मल्चिंग से पानी की भी बचत होती है. पौधों की जड़ों का विकास और फसल की गुणवत्ता बेहतर होती है. मल्च को तैयार करने के लिए पत्तियां, घास के टुकड़े, भूसा, गन्ने की पत्तियां, फसल अवशेष, प्लास्टिक शीटिंग और लैंडस्केप फैब्रिक का प्रयोग होता है.
सहारनपुर के गांव दगनोली के रहने वाले मयंक ने मल्च विधि से पहली बार ब्रोकली उगा रहे हैं. मयंक उन युवाओं के लिए प्रेरणा हैं जो अपनी परंपरागत खेती को छोड़कर सरकारी नौकरियों के पीछे भाग रहे हैं और डिप्रेशन में रहते हैं, जबकि मयंक परंपरागत खेती कर लाखों रुपये कमा रहे हैं. लोकल 18 से बात करते हुए मयंक कहते हैं कि मल्च एक ऐसी प्रक्रिया है जिसका उपयोग मिट्टी में नमी बनाए रखने, खरपतवारों को दबाने, मिट्टी को ठंडा रखने और सर्दियों में पाले की समस्या से पौधों को सुरक्षित रखने के लिए किया जाता है.
मयंक कहते हैं कि कार्बनिक मल्च धीरे-धीरे अपघटित होने के कारण मिट्टी की संरचना, जल निकासी और पोषक तत्वों को धारण करने की क्षमता में सुधार करने में भी मदद करती है. सब्जी उगाने वाले किसानों के लिए मल्च एक अच्छा ऑप्शन है जिसमें न तो मजदूर की आवश्यकता पड़ती और न खाद इत्यादि की. इस विधि में खर्च भी काम आता है और सब्जी की गुणवत्ता भी बढ़ती है.