इमोशन्स से भरी है नाना पाटेकर की ‘वनवास
सालों बाद सिनेमाघरों में कोई ऐसी फिल्म रिलीज हुई है जो पूरी तरह से पारिवारिक है. ‘गदर 2’ के बाद अनिल शर्मा ने एक बार फिर अपने बेटे उत्कर्ष शर्मा के साथ सिमरत कौर की जोड़ी को बड़े पर्दे पर पेश किया है. नाना पाटेकर अभिनीत फिल्म ‘वनवास’ 20 दिसंबर 2024 को सिनेमाघरों में रिलीज हुई. फिल्म बेहतरीन है, पूरे परिवार के साथ देखने लायक है और सबसे बड़ी बात यह एक बड़ा संदेश भी देती है. तो चलिए जानते हैं कैसी है फिल्म ‘वनवास’.
कहानी हिमाचल प्रदेश के पालमपुर से शुरू होती है, जहां दीपक त्यागी (नाना पाटेकर) नाम का एक बूढ़ा आदमी अपने तीन शादीशुदा बेटों के साथ रहता है. दीपक अपनी पत्नी से बहुत प्यार करता था, लेकिन अब वह इस दुनिया में नहीं है. बढ़ती उम्र के साथ दीपक को भूलने की बीमारी हो गई है, उसे सिर्फ अपनी पत्नी और छोटे बच्चे याद हैं, उसे पता है कि उसके तीनों बेटे बड़े हो गए हैं और उन सभी की शादी हो चुकी है और अब उनके बच्चे भी हैं.
दीपक अपने बच्चों के साथ जिस घर में रहता है, वह पालमपुर के पॉश इलाके में है और वह इस घर को ट्रस्ट में बदलना चाहता है, जो उसके बेटों और बहुओं को पसंद नहीं है. इसलिए पूरी योजना के साथ सभी दीपक को बनारस छोड़ देते हैं. अपनी कमजोर याददाश्त के कारण वह अज्ञातवास में अपनी पत्नी और छोटे बेटों को खोजता रहता है. इसी बीच उसकी मुलाकात एक ठग वीरू (उत्कर्ष शर्मा) से होती है. वीरू दीपक त्यागी से छुटकारा पाना चाहता है, लेकिन ऐसा नहीं हो पाता. अब सवाल यह है कि क्या दीपक त्यागी अपने घर वापस जा पाएगा? यह जानने के लिए आपको सिनेमाघर जाकर पूरी फिल्म देखनी पड़ेगी.
फिल्म अपनी दिल छू लेने वाली कहानी के लिए खास है, जिसे अनिल शर्मा ने लिखा है। उन्होंने कहानी में ह्यूमर, टकराव और माफी को बहुत ही खूबसूरती से पिरोया है. कहानी के केंद्र में नाना पाटेकर हैं. वनवास भावनाओं पर फोकस करता है, लेकिन इसे जरूरत से ज्यादा ड्रामेटिक नहीं बनाता. कहानी दर्शकों से गहराई से जुड़ती है और हर मुस्कान और आंसू को असली महसूस कराती है. अनिल शर्मा का डायरेक्शन इन पलों में जान डाल देता है, जिससे फिल्म की कहानी शुरू से आखिर तक अपने साथ बांधे रखती है.
अगर एक्टिंग की बात की जाए तो नाना पाटेकर के आगे सबकी एक्टिंग कमजोर पड़ जाती है. उत्कर्ष शर्मा और सिमरत कौर ने भी काफी मेहनत की है, लेकिन उन्हें अभी एक्टिंग में और मेहनत करने की जरूरत है. वैसे कमियों की बात की जाए तो फर्स्ट हाफ आपको बांधे रखता है, लेकिन सेकंड हाफ मेंफिल्म की रफ्तार थोड़ी धीमी पड़ जाती है. वहीं, फिल्म में डायलॉग डिलिवरी पर भी और काम किया जाता तो अच्छा होता.
वैसे, फिल्म की सिनेमैटोग्राफी पारिवारिक माहौल को खूबसूरती से दर्शाती है, जो फिल्म की निजी भावना को और बढ़ाती है. बैकग्राउंड म्यूजिक फिल्म के भावनात्मक उतार-चढ़ाव से पूरी तरह मेल खाता है, जो अनुभव को और भी गहरा बनाता है. ‘गदर 2’ के बाद अनिल शर्मा ने एक बार फिर मिथुन शर्मा को संगीत की जिम्मेदारी दी, लेकिन फिल्म के गाने आपको थोड़ा निराश जरूर करेंगे. मैं यह कहना चाहूंगा कि ‘वनवास’ सिर्फ एक फिल्म नहीं है, यह हमारी जिंदगी का आईना है, जो हमें मानवीय रिश्तों की नाजुकता और मजबूती दिखाता है. मेरी तरफ से इस फिल्म को 3.5 स्टार.