बुलंदशहर : अनिरुद्धाचार्य बोले- मन की पवित्रता जरूरी
किशन तालाब मंदिर परिसर में चल रही श्रीमद् भागवत कथा का समापन भक्तिभाव और उल्लास के साथ हुआ। कथा के अंतिम दिन विश्व प्रसिद्ध कथा वाचक अनिरुद्धचार्य ने अपनी अमृतमयी वाणी से भक्तों को भक्ति के रस में सराबोर कर दिया। उनकी दिव्य वाणी से निकली श्रीमद् भागवत की पतित पावनी कथाओं ने उपस्थित श्रद्धालुओं को भावविभोर कर दिया।
अनिरुद्धाचार्य ने कहा कि भगवान को 56 भोग नहीं, बल्कि सच्चे प्रेम और समर्पण से अर्पित किया गया अन्न प्रिय होता है। उन्होंने सुदामा के कच्चे चावल, विदुराणी के केले के छिलके और शबरी के झूठे बेर का उदाहरण देकर यह बताया कि भगवान केवल भाव और मन की पवित्रता के भूखे हैं। उन्होंने कहा, “भगवान के लिए शरीर की पवित्रता से अधिक मन की पवित्रता महत्वपूर्ण है।”
भक्ति और ज्ञान का अंतर आचार्य जी ने भक्ति मार्ग और ज्ञान मार्ग का फर्क समझाते हुए कहा कि भक्ति में भगवान अपने भक्त को थामते हैं, जबकि ज्ञान मार्ग में ज्ञानी स्वयं भगवान को पकड़ने का प्रयास करता है। भगवान की पकड़ हमेशा मजबूत होती है, लेकिन मनुष्य की पकड़ में दोष हो सकता है।
उन्होंने अभिभावकों से आग्रह किया कि अपने बच्चों को राम-कृष्ण, ऋषि-मुनियों, महापुरुषों और वीरांगनाओं के बारे में सिखाएं। उन्होंने कहा, “बच्चों को भारतीय संस्कृति से जोड़ना जरूरी है। हॉलीवुड या बॉलीवुड की चकाचौंध बच्चों को भटका सकती है।” राधे राधे बोल श्याम आएंगे, आएंगे शाम आएंगे वृंदावन का नूर है बरसाना कहां दूर है सब तेरी नजर का कसूर है भगवान आएंगे मन से बुलाओ श्याम आएंगे राधे आएंगे भजन पर भक्त जमकर झूमें। कथा के अंतिम चरण में सुदामा चरित्र और उधव-गोपी संवाद जैसे प्रसंग सुनाए गए। भक्तों ने आरती और फूलों की होली का आनंद लिया। फूलों से खेली गई इस होली ने भक्तों को उत्साह और आनंद से भर दिया।कथा का समापन आरती और प्रसाद वितरण के साथ हुआ। भक्तों ने तन-मन से भगवान के नाम का गुणगान करते हुए इस अद्भुत अनुभव के लिए आयोजकों और अनिरुद्ध आचार्य का आभार प्रकट किया।