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डहरे टुसू परब प्रकृति के साथ कुंवारी कन्याओं भी झूमती रही,उमड़ा जनसैलाब।

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धनबाद (राम दयाल गुप्ता), शहर में पहली बार डहरे टुसू परब पर विशाल शोभा यात्रा निकाली गयी. शोभा यात्रा सरायढेला मड़प थान से शुरू हुई. यह यात्रा स्टील गेट, पुलिस लाइन, रणधीर वर्मा चौक, कोर्ट रोड, डीआरएम चौक, बेकारबांध, सिटी सेंटर होते हुए वापस रणधीर वर्मा चौक तक गयी. पूरी यात्रा में भारी संख्या में लोग शामिल हुए. सरायढेला मड़प थान में सुबह से ही कार्यक्रम को लेकर लोगों का भिड़ होना शुरू हो गया था. दोपहर 12 बजे के बाद शोभा यात्रा शुरू हुई. सभी लोग पैदल चल रहे थे. छोटे बच्चे, महिलाएं, युवतियां से लेकर वृद्ध भी उत्साह के साथ शामिल हुए. इस दौरान महिलाएं टुसू गीत गाते हुए चल रही थी. वहीं युवतियां व बच्चियां नाचते हुए चल रही थी. पुरुष भी ढोल, नगाड़ा व मांदर की थाप पर थिरकते नजर आये. शोभा यात्रा में शामिल आदिवासी-मूलवासी लोग हाथों में चौड़ल लेकर भी चल रहे थे ।

टुसू पर्व झारखंड के आदिवासियों व मूलवासियों का सबसे महत्वपूर्ण परब है. यह जाड़ों में फसल कटने के बाद 15 दिसंबर से लेकर मकर संक्रांति (14 जनवरी) तक लगभग एक महीने तक मनाया जाता है. टूसू का शाब्दिक अर्थ कुंवारी है. वैसे तो झारखंड के सभी पर्व-त्योहार प्रकृति से जुड़े हुए हैं, लेकिन टुसू परब का महत्व कुछ और ही है. टुसू परब मूल रूप से प्रकृति से जुड़ा है. इसमें धान का प्रयोग किया जाता है. धान मनुष्य के लिए मुख्य आहार का आधार होता है. इस दौरान कुंवारी कन्याएं मिट्टी का शारवा में धान रखकर प्रतिदिन शाम को पैर-हाथ धोकर फूल चढ़ाकर पूजा करती है. साथ ही गीत गाकर टुसूमनि को जगाती है. वहीं, मकर संक्रांति के दिन टुसू पर्व मनाया जाता है और फिर उसके अगले दिन इसे नदी में प्रवाहित कर दिया जाता. इसके साथ ही टुसू परब का समापन हो जाता है।

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