केन्द्रीय बजट 2024 : दलित आदिवासियों के सामाजिक न्याय पर नहीं उतरा खरा : रतन तिर्की
राँची (सद्दाम हुसैन), एक फरवरी को केन्द्रीय मंत्री डा0 निर्मला सीता रमण ने 5108780 करोड़ का अंतरिम बजट पेश किया है। इसमें अनुसूचित जाति के कल्याण के लिए कुल 165598 करोड़ रुपये और अनुसूचित जनजातियों के लिए 121023 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं । नीतिगत दस्तावेजों और जिसमें संविधानिक प्रावधान की बातें भी शामिल हैं, कहा गया है कि इन दोनों वर्गों के सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक जैसे सर्वांगीण विकास के लिए उनकी जनसंख्या के अनुपात में बजटीय प्रावधान किया जाना है। इस बजट राशि का विचलन नहीँ किया जाएगा और वित्तीय वर्ष के अंत में इसे लैपस नहीं किया जाएगा ।
2011 की की जनगणना आंकडों के अनुसार भारत में दलितों की जनसंख्या 16.80 % और अनुसूचित जनजातियों की जनसंख्या 8.60% है। इसके अनुसार देश का बजटीय प्रावधान भी दोनों समुदायों को मिलाकर 25% की हिस्सेदारी होनी चाहिए।
बजट विश्लेषण से परिलक्षित होता है कि पूर्व की भांति आगामी वित्तीय वर्ष में भी सरकार अपने नीतिगत निर्णयों को पूरा करने में अक्षम साबित हुई है । जहाँ ऊपरी तौर पर 2024 के बजट प्रावधान में अनुसूचित जाति के लिए 11.50 फीसदी और अनुसूचित जनजातियों के लिए 8.40 प्रतिशत ही बजट आवंटित की गई है। लेकिन इस बजट की सूक्ष्मता में जाते हैं तो बजट का एक बड़ा हिस्सा ऐसी योजनाओं के लिए किए गाये हैं, जिनसे आदिवासियों व दलितों का कोई संबंध नहीं है। अनुसूचित जातियों महज 44,282 करोड़ एवं अनुसूचित जनजातियों के लिए 36,212 करोड़ योजनाओं से ही सीधा लाभ मिल सकेगा। अनुसूचित जातियों के लिए यह कुल बजट का मात्र 3.10% एवं अनुसूचित जनजातियों के लिए 2.5% ही होगा। बजट वह भी तब मिलेगा जब योजनाएं ब्यवहारिक धरातल पर पूर्ण रूप से क्रियान्वित किए जाएंगे। उक्त बातें सामाजिक कार्यकर्त्ता जेम्स हेरेंज ने राँची स्थित प्रेस क्लब में आयोजित प्रेस वार्ता में कही।
सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व राज्य सलाहकार सदस्य बलराम ने कहा कि पर्याप्त बजट आवंटन नहीं किए जाने से सतत विकास का प्रथम लक्ष्य, गरीबी को पूर्णतः खत्म करना, भूख की समाप्ति, खाद्य सुरक्षा और बेहतर पोषण और टिकाऊ कृषि को बढ़ावा को हासिल करने में कतई सरकार सफल नहीं होगी । जिसका भारत सरकार भी हस्ताक्षरी है। दलित आदिवासी और खास कर आदिम जनजाति समुदाय को स्वास्थ्य शिक्षा रोजगार गरीबी उन्मूलन की बात करते हैं और यह कतई संभव नहीं है जिस प्रकार आज की ट्राईबल विलेज में सिंगल स्कूली शिक्षक की व्यवस्था कायम है पोस्ट मैट्रिक स्कॉलरशिप में कटौती किया गया है जो आज PVTG के लिए बजट लाया गया है सिर्फ 20 करोड़ है जहां पर कुपोषण, शिक्षा , स्वास्थ ,गरीबी की स्थिति बनी हुई है वहा बजट में कटौती करना यह सरकार के लिए शर्म की बात है
जनजातीय सलाहकार समिति के पूर्व सदस्य रतन तिर्की ने कहा कि सरकार के समावेशिता के वादों के बावजूद, बजट निर्णय लेने वाले निकायों में दलितों और आदिवासियों का पर्याप्त प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने के उपायों की रूपरेखा नहीं बताता है। यह निरीक्षण इन समुदायों को उन नीतियों में सक्रिय रूप से योगदान करने के अवसर से वंचित करता है जो उनके जीवन को प्रभावित करती है और प्रणालीगत बहिष्करण को कायम रखती है। यह बजट कटौती ऐसे समय में की गई है जब देश में रामराज्य आ गया है। इससे ये वर्ग भलीभांति समझ चुका है कि ऐसे दलित आदिवासी विरोधी सरकारों के सत्तासीन रहते इन समुदायों का सर्वांगीण विकास एक दिवास्वपन मात्र है। माँग रखी गई कि दोनों महत्वपूर्ण योजनाओं के सतही क्रियान्वयन के लिए सशक्त कानून बने। इसका ड्राफ्ट भी झारखंड सरकार के फाइलों में लंबित है। जिसे टीआरआई ने कई राज्य स्तरीय बैठकों के जरिए तैयार किया है। कार्यशाला में यूनाईटेड मिली फोरम के अफजल अनिश, एडवोकेट निषाद खान, एवं राष्ट्रीय भुईंयाँ जागृति परिषद के मनोज भुईंयाँ मौजूद थे