गेहूं की फसल पर मंडरा रहा इस रोग का खतरा
कन्नौज. सर्दियां पीक पर हैं और गेहूं की फसल करीब एक महीने की हो चुकी है. मौसम के उतार-चढ़ाव के बीच इस समय गेहूं की फसल में पीला रोग लगने की संभावना प्रबल है. ऐसे में अगर शुरुआती दिनों में ही समय रहते इस रोग पर काबू पा लिया गया तो काफी हद तक फसल के नुकसान को कम किया जा सकता है. अगर अभी सावधानी नहीं बरती गई तो नुकसान ज्यादा हो सकता है. ऐसे में किसानों को तत्काल कृषि वैज्ञानिकों से परामर्श करके दवा और उर्वरक का छिड़काव कर लेना चाहिए.
क्या होता ये रोग
मौसम के उतार चढ़ाव के बीच गेहूं में कई तरह के रोग लगने का खतरा मंडराता रहता है. इस मौसम में गेहूं की फसल में लगने वाला पीला रतुआ एक खतरनाक फंगल रोग है. ये रोग गेहूं की पत्तियों पर पीले धब्बे पैदा करता है, इसलिए इसे धारीदार रतुआ भी कहा जाता है. इस रोग से गेहूं की उपज में 25% से 40% तक की कमी हो सकती है.
गेहूं किसान कुछ सावधानियां बरत कर अपनी फसल को स्वस्थ बना सकते हैं. इसमें सबसे प्रमुख है यूरिया का प्रयोग. यूरिया का प्रयोग खेत में पानी लगाने के एक या दो दिन पहले नहीं करना चाहिए. पीला रोग लगने पर किसान 100 लीटर पानी में दो से 2.5 किलोग्राम के अनुपात में यूरिया का प्रयोग तत्काल करें. जिंक सल्फेट अगर 33% है तो 200 ग्राम, अगर 21% है तो 400 ग्राम घोल बनाकर इसका छिड़काव करें. एक सप्ताह बीत जाने के बाद कृषि वैज्ञानिकों के परामर्श से दूसरी डोज का छिड़काव करें.
क्या बोले कृषि वैज्ञानिक
कृषि वैज्ञानिक अरविंद कुमार बताते हैं कि जैसा मौसम चल रहा है उसमें गेहूं की फसल में पीला रोग लगने की संभावना सबसे अधिक है. इस रोग को इसके शुरुआती दिनों में ही रोकना कारगर उपाय है. किसानों को इसकी रोकथाम के लिए कृषि वैज्ञानिकों से परामर्श करके यूरिया का प्रयोग कर लेना चाहिए. अगर समय रहते इस रोग से बचने के उपाय नहीं किए गए तो ये कम से कम 25 से 40 फीसदी तक उपज को बर्बाद कर सकता है.