मुस्लिमों की शिकायतें दूर? वक्फ बोर्ड पर JPC ने ले लिया बड़ा फैसला
वक्फ संशोधन विधेयक पर मुस्लिम समाज की कई शिकायतें दूर कर ली गई हैं. ज्वाइंट पार्लियामेंट्री कमेटी (JPC) ने सभी दलों के साथ चर्चा के बाद विधेयक में 14 बदलावों को मंजूरी दे दी है, लेकिन इनमें 3 ऐसे हैं, जिनकी डिमांड मुस्लिम समाज के लोगों ने भी की थी. अब इस बिल को बजट सत्र के दौरान संसद में पेश किया जाएगा और वहां से पास होने के बाद यह कानून लागू हो जाएगा.
जेपीसी चेयरमैन जगदंबिका पाल ने कहा, हमने पार्लियामेंट्री कमेटी के सदस्यों से संशोधन मांगे थे. उन्होंने बिल में 572 संशोधन करने का सुझाव दिया. इनमें से 44 संशोधनों पर चर्चा की गई और बहुमत के आधार पर कमेटी ने 14 संशोधनों को स्वीकार कर लिया है. विपक्षी सदस्यों ने जो भी संशोधन दिए थे, उस पर वोटिंग कराई गई. लेकिन तमाम प्रस्ताव 10 के मुकाबले 16 वोट से खारिज कर दिए गए. हम यह संशोधन वक्फ की बेहतरी और आम जनता के फायदे के लिए ला रहे हैं.
- कोई संपत्ति वक्फ है या नहीं, इसके निर्धारण का अधिकार बिल में जिला कलेक्टर को दिया गया था, लेकिन ज्वाइंट पार्लियामेंट्री कमेटी ने इसमें बदलाव करने को मंजूरी दे दी है. अब जिला कलेक्टर की बजाय राज्य सरकार की ओर से नामित अधिकारी उसका फैसला करेगा. विपक्षी दलों की ओर से यह मांग की गई थी.
- वक्फ संशोधन बिल में प्रावधान है कि राज्य वक्फ बोर्ड और केंद्रीय वक्फ परिषद में कम से कम दो गैर मुस्लिम सदस्य होंगे. लेकिन
अब बदलाव करके सदस्यों को इससे अलग रखा गया है. इसका मतलब ये हुआ कि नामित सदस्यों में से दो सदस्यों का गैर मुस्लिम होना अनिवार्य होगा. मुस्लिम समाज की यह मांग थी. - मुस्लिम समाज की डिमांड थी कि नया कानून Retrospective लागू न हो. यानी की पहले से तय मामलों पर फैसला न हो. लेकिन अब इसमें कुछ बदलाव किए गए हैं. अगर वक्फ संपत्ति पंजीकृत होगी तो यह कानून Retrospective नहीं होगी. हालांकि, कांग्रेस सांसद और जेपीसी सदस्य इमरान मसूद ने इसे लेकर कहा कि 90 फीसदी वक्फ संपत्ति पंजीकृत नहीं है. उसका क्या होगा? उस पर तो यह कानून लागू ही हो जाएगा.
विपक्ष ने क्या कहा?
JPC की बैठक के बाद TMC सांसद कल्याण बनर्जी ने कहा, उन्होंने वही किया जो उन्होंने तय किया था. उन्होंने हमें बोलने नहीं दिया. किसी भी नियम या प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया. शुरू में, हमने दस्तावेज और टिप्पणियां मांगी थीं. वे सभी चीजें हमें नहीं दी गईं. उन्होंने खंड दर खंड चर्चा शुरू कर दी. हमने कहा, पहले चर्चा करते हैं. जगदंबिका पाल ने चर्चा ही नहीं होने दी. फिर वे संशोधन प्रस्ताव लेकर आए. हम सभी को संशोधन प्रस्ताव पर बोलने नहीं दिया गया. उन्होंने खुद प्रस्ताव पेश किया, गिना और घोषणा की. सभी संशोधन पारित हो गए. हमारे संशोधन खारिज कर दिए गए और उनके संशोधन को अनुमति दे दी गई. यह एक दिखावा था. यह लोकतंत्र का काला दिन है.
विपक्ष नाराज क्यों?
कांग्रेस सांसद इमरान मसूद ने कहा, संसदीय परंपराओं का पालन नहीं किया जा रहा और यह विधेयक पूरी तरह से समय के खिलाफ है. यह वक्फ की संपत्तियों को हड़पने की एक साजिश प्रतीत हो रही है और इसके माध्यम से देश में नफरत फैलाने की योजना बनाई जा रही है. हमने स्पीकर से सवाल किया कि इतनी जल्दबाजी क्यों है, जबकि इस विधेयक को सत्र के आखिरी दिन यानी 4 अप्रैल तक रखा जा सकता था. उन्हें यह आशंका है कि इस तरह की जल्दबाजी से सभी पक्षों को अपनी बात रखने का उचित समय नहीं मिलेगा.